समीक्षा - सॉफ्ट कॉर्नर - मानवीय संवेदनाओं की पड़ताल करती कहानियाँ - ___ डॉ. नीलोत्पल रमेश समीक्षासमीक्षा

समीक्षा - सॉफ्ट कॉर्नर - मानवीय संवेदनाओं की पड़ताल करती कहानियाँ


                                                                                                - डॉ. नीलोत्पल रमेश


 


    डॉ. नीलोत्पल रमेश 'सॉफ्ट कॉर्नर' रामनगीना मौर्य का तीसरा कहानीसंग्रह है, जो हाल में प्रकाशित हुआ है। इसके पूर्व में भी कथाकार रामनगीना मौर्य के दो कहानी-संग्रह, 'आखिरी गेंद' (वर्ष २०१७) और 'आप कैमरे की निगाह में हैं' (वर्ष २०१८) प्रकाशित हो चके हैं, जिनके माध्यम से उन्होंने हिन्दी कथा-साहित्य में अपनी मजबत उपस्थिति दर्ज करा दी है। दोनों कहानी संग्रहों को पाठकों ने काफी सराहा और पसन्द भी किया है। इनके दो-दो, तीन-तीन संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। वर्तमान समय में हिन्दी कथा-साहित्य के पाठकों के लिए रामनगीना मौर्य एक जाना-पहचाना नाम बन चुका है।


    मैं रामनगीना मौर्य के तीनों कथा-संग्रहों की कहानियों से गुजरा हूं। ये कहानियां एक नई भाव-भूमि और प्रवृत्ति कीओर इशारा करती हैं। ये स्थितियां हैं, रोजमर्रा के जीवनानुभव और मानवीय संवेदनाएं। इन्हीं के सहारे कथाकार अपनी कहानियों में उपस्थित होता है, और सब कुछ बताता चलता है। ये सब लगता ही नहीं कि बनावटी है, बल्कि हमारे ही जीवनानुभव का हिस्सा बनते चले जाते हैं, और लगता है कि ये तो हमारे ही साथ घटित हो रहा है। मैं ही हूं इस कहानी का हिस्सा, ऐसा लगने लगता है।


    रामनगीना मौर्य ने अपनी बात' में लिखा है कि "लिखना चुनौतीपूर्ण है। हमारे इर्द-गिर्द, नित-प्रति काफी कुछ ऐसा घटित होता रहता है, जिसे लक्ष्य कर बहुत कुछ लिखा जा सकता है। हालांकि यथार्थ से परिपूर्ण लेखन किसी मानसिक यंत्रणा से भी कम नहीं है। यद्यपि यह आपको कहीं-न-कहीं मजबूत भी करता है। इसी बहाने आपको अपनी खूबियों-खामियों को जानने-समझने का अवसर भी मिलता है। वैसे भी, कभी-कभी फैसले लेते वक्त निर्मम होना पड़ता है।" कथाकार रामनगीना मौर्य ने अपनी कहानियों के कथा-तंतुओं को उपरोक्त बातों के परिपेक्ष्य में रचा है, बुना है और एक मजबूत इमारत का निर्माण किया है। इन्हीं मजबूत नींव पर इनकी कहानियां निर्मित हुई हैं, और पाठकों को अपनी ओर ध्यान केन्द्रित करने में सफल हुई हैं।


    मैं अपनी बात की शुरुआत 'सॉफ्ट कॉर्नर' शीर्षक नामित कहानी से ही प्रारम्भ करता हूँ। इस कहानी में कथाकार ने शादी-शुदा दम्पति के शादी के पूर्व की औपचारिक बातचीत में 'सॉफ्ट कॉर्नर' की बात आती है। पत्नी से पति पूछता है कि शादी के पूर्व तुम्हारा किसी लड़के के प्रति 'सॉफ्ट कॉर्नर' था? तो पत्नी भी पति से यही सवाल पूछ बैठती है। इसी विषय के इर्द-गिर्द घूमती यह कहानी हमारे जीवन के सुनहरे पल की ओर ले जाती है, जो पति-पत्नी के बीच हल्की नोंक-झोंक भी करा देती है। साथ-ही-साथ दैनिक गतिविधियों की ओर इशारा भी करती है। आज के दौर में पति-पत्नी के रिश्ते मधुर बहुत कम ही देखने को मिलते हैं। इस कहानी में इस बात की ओर कथाकार ने ध्यान दिलाया है कि आज के दौर में रिश्तों की मजबूती जरूरी है, तभी स्वस्थ समाज का निर्माण हो सकेगा ।


    'उसकी तैयारियां' कहानी में कथाकार ने पति-पत्नी और बच्चों के द्वारा पार्टी में जाने की तैयारी को लेकर ही कथा के तंतुओं का निर्माण किया गया है। पार्टी में जाने को लेकर अमूमन प्रत्एक घर में इसी तरह की स्थितियां उत्पन्न होती हैं। एक कुशल गृहिणी की जिन्दगी घर-परिवार के लिए मजबूत आधार होती है, जिसमें आखिरकार वही घिरनी की तरह चारों तरफ नाचती फिरती है। कथाकार ने, भागमभाग की जिन्दगी में एक गृहिणी अपनी जिम्मेवारियों को कैसे निभाती है, उसका बहुत ही मार्मिक ढंग से वर्णन किया है।


    'संकल्प' कहानी में कथा-नायक एक दिन निर्णय लेता है कि आज वह एकदम फिजूलखर्ची नहीं करेगा। फिजूलखर्ची के कारण ही घर की स्थिति चरमरा गई है। यही कारण है कि पत्नी भी कथा-नायक को यदा-कदा टोकती रहती है। एक दिन कथा-नायक संकल्प लेता है कि वह आज किसी भी हालत में फिजूलखर्ची नहीं करेगा। जूते पॉलिश करने वाले एक लड़के की मासूमियत ने उसे अभिभूत कर दिया, और वह उसे कुछ सहयोग करना चाहता है, लेकिन वह लड़का बिना काम किए पैसे लेने से इनकार कर देता है। कथा-नायक अपना जूता पॉलिश करवाकर उसकी मदद करता है। इससे उसे संतुष्टि भी मिलती है, और वह खुशीखुशी घर लौटता है।


          'बेवकूफ लड़का' के माध्यम से कथाकार द्वारा एक नव-दम्पति के घर उनकी पहली सन्तान जन्म लेने वाली है, की कथा कही गई है। पत्नी लेबर-रूम में है। पति बाहर बैठकर इंतजार कर रहा है। इस बीच पति को अपने भाईबहनों के जन्म की याद हो आती है। जिसमें पड़ोस की दादी जी द्वारा उसे 'बेवकूफ लड़का' कहना याद आता है। उस समय की ग्रामीण-संस्कृति में बच्चों के जन्म के समय आस-पड़ोस की बूढ़ी दादी ही प्रसव करवाती थीं। आज के दौर में ये सब बातें सिर्फ याद की बातें ही रह गई हैं। अंततः बेवकूफ लड़के के घर एक बिटिया का जन्म होता है। इसमें पहले और अब के समय को बहुत ही रोचक ढंग से कथाकार ने प्रस्तुत किया है।


    _ 'अनूठा प्रयोग' कहानी में कथा-नायक अपने मित्र के घर गृह-प्रवेश के आयोजन में शामिल होने के लिए गया हुआ है। फिर वह वहां आए हुए मेहमानों और बच्चों के कार्य-व्यापार की गतिविधियों का वर्णन करता चलता है। इसी बीच उसके दोस्त और उसकी पत्नी का मेहमानों के स्वागत-सत्कार में लगे होने का वर्णन भी करते चलता है। एक बच्चे के द्वारा अनूठा-प्रयोग वहां उपस्थित सभी लोगों को अपनी ओर ध्यान केन्द्रित करवा देता है। सचमुच में यह कहानी हमारे अन्दर के बच्चे को जीवित कर देती है।


    'आखिरी चिट्ठी' कहानी के माध्यम से कथाकार ने आज के समय में चिट्ठी की आवाजाही की ओर इशारा किया है, जो लगभग बन्द हो चुकी है। कथा-नायक किसी जरूरी कागज की तलाश कर रहा था कि इसी बीच में एक चिट्ठी उसके हाथ लग जाती है, जिसे उसके स्कली मित्र महेश ने अपनी शादी में आने के लिए लिखा था। इसी बहाने उस दौर की बहुत सारी बातें भी कथा-नायक करते चलता है। चिट्ठी का मिलना भर था कि कथा-नायक को उस समय की अनेक स्मतियां चलचित्र की भांति उसके दिमाग में चलने लगती हैं, फिर तो वह उस दौर में अपने को जीवन्त कर लेता है। हालांकि कथा-नायक अपने मित्र की शादी में शामिल नहीं हआ था, फिर भी उसके साथ गजरे समय को पूरी शिद्दत से याद करता है।


    'ग्लोब' कहानी के माध्यम से कथाकार ने पीढी के अन्तराल को बेहद ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है। पिता-पत्र के माध्यम से कथाकार ने वैश्विक-पटल पर हो रहे बदलाव को उजागर करने की कोशिश की है। ग्लोब के बहाने कथा-नायक अपने बचपन की स्थितियों से अपने पुत्र को भी लाभान्वित करना चाहता है, लेकिन पुत्र ग्लोब के बदले मोबाइल, कम्प्यूटर आदि से ही वे सारी चीजें पिता को समझा देता है। एक जगह पिता कहता भी है कि...“कहाँ हमारी लौकी, बैगन, भिण्डी, तरोई, कुंदरू, टिण्डा, देशी घी वाली पीढ़ी और कहाँ ये पिज्जा, बर्गर, प्रोसेस्ड-फूड, नूडल्स और रिफाइण्ड तेलों से बने पदार्थ आदि खाने वाली पीढ़ी? भला क्या मुकाबला हमारा-इनका?" प्रस्तुत कथन पीढ़ी के अन्तराल को स्पष्ट कर देता है।


    'अखबार का रविवारीय परिशिष्ट' कहानी में कथानायक एक रचनाकार हैइस परिशिष्ट से उसका विशेष लगाव है। वह प्रत्येक सप्ताह का परिशिष्ट संभालकर रखता है। लेकिन एक दिन हॉकर ने 'अखबार का रविवारीय परिशिष्ट' नहीं दिया। इस परिशिष्ट को प्राप्त करने के लिए उसके द्वारा किए गए प्रयास को कथाकार ने बहुत ही संजीदगी से प्रस्तुत किया हैथक-हारकर कथा-नायक को वह परिशिष्ट नहीं ही मिलता है, पर बहुत ही नाटकीय ढंग से उसके किराएदार द्वारा उसी परिशिष्ट में पकौड़े भेजना, जिस पर उसकी नजर पड़ती है तो वह बहुत खुश होता है।


    'लोहे की जालियां' कहानी के माध्यम से कथाकार ने 'रूसो' की उक्ति को चरितार्थ किया है कि 'मनुष्य पैदा तो स्वतंत्र हुआ है, मगर हर जगह जंजीरों में जकड़ा हुआ है।' इसी कथन के आलोक में यह कहानी रिश्ते-नाते और आज की जीवन शैली के इर्द-गिर्द घूमती नजर आ रही है। कथा-नायक जिस किराए के मकान में रहता था, उसके दरवाजे और खिड़कियों में उसने लोहे की जालियां लगवाया था, ताकि वह और उसका परिवार ठीक से रह सके। अपना घर बन जाने के बाद जब वह घर छोडता है तो, लोहे की ह जालियां ज्यों-की-त्यों रह जाती हैं। उन्हें निकलवाने में खर्च का अनुमान कर, पहले तो वो मकान मालिक से लागत खर्च लेना चाहता है, लेकिन उनके इनकार करने के बाद, नए किराएदार से वसूल करना चाहता है। जब पहली बार इस सन्दर्भ में बात करने के लिए वह किराएदार के पास जाता है तो वह उसका पूर्व परिचित मित्र ही निकल जाता है। फिर इसी रिश्ते में उलझकर कहानी समाप्त हो जाती हैपत्नी के इस कथन में ही कहानी का सम्पूर्ण सार-तत्व समाहित है..."जाहिर है, वो लोहे की जालियां, इन्सानी रिश्तों की जंजीर से कमजोर साबित हई। फिर...जीवन में किसका एहसान हमें किस रूप में चुकाना पड़ जाए, कौन जानता है?"


    'छट्टी का सदुपयोग' कहानी में नौकरी-पेशा लोगों की जिन्दगी में छुट्टियों की महत्ता को बहुत ही बारीकी से प्रस्तुत किया गया है। कथा-नायक और उसकी पत्नी के संवाद के द्वारा अनेक प्रसंगों का मार्मिक ढंग से वर्णन, पाठकों को बांधे रहने में सार्थक साबित होता है। इसमें कथाकार का जीवनानुभव साफ-साफ देखा जा सकता है।


    'बेकार कुछ भी नहीं होता' कहानी के माध्यम से कथाकार ने यह सिद्ध करने की कोशिश की है, दुनिया की कोई भी चीज बेकार नहीं होती है। उसकी उपयोगिता समय और परिस्थिति के अनुसार है। बिना इसके काम चलने वाला नहीं है। इसी बात को इस कहानी में कथाकार ने दिखाया है, जिसमें कथाकार को सफलता भी मिली है।


    रामनगीना मौर्य की कहानियां बनाव-सिंगार से इतर की कहानियां हैं। इसमें रोजमर्रा के जीवन की अनुभूतियां समाहित हैं। साथ ही इन कहानियों को पढ़ने के बाद लगता ही नहीं है कि ये कहानियां हमारे इर्द-गिर्द नहीं घूम रही हैं। ये तो ऐसी लगती हैं कि मेरे साथ ही ऐसा हो रहा है। रामनगीना मौर्य की कहानियां नई भाषा, नए कहन और नए भाव-भूमि की कहानियां हैं, जिससे कहानी के एक नए दौर की शुरुआत हुई है, जो आगे चलकर और समृद्ध होगी। मेरी अनन्त शुभकामनाएं रामनगीना मौर्य को।


      'सॉफ्ट कार्नर' : कहानी संग्रह, कथाकार : रामनगीना मौर्य, मूल्य : १७५ रुपए, पृ. : १२८, प्रकाशन वर्ष : २०१९, प्रकाशक : रश्मि प्रकाशन, लखनऊ २२६०२३


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