राजेश जोशी के काव्य में लोक जीवन की पहचान

राजेश जोशी के काव्य में लोक जीवन की पहचान


 


    मुकेश कुमार , शोधार्थी (एम. फिल), हिन्दी विभाग, अम्बेडकर भवन हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय राजेश जोशी समकालीन हिन्दी साहित्य के सबसे सशक्त और सफल साहित्यकारों में से एक है। कवि होना समय और समाज की मांग है। जिससे वह अपने बहुमुखी और वेजोड़ रचना शिल्प से समाज को एक नयी दिशा एवं नयी सोच देता है। राजेश जोशी भी इसी नयी दिशा और सोच के कवि हैं। समकालीन साहित्य में उनका नाम सबसे अग्रगण्य है। गजानन माधव मुक्तिबोध, नागार्जुन और केदारनाथ सिंह की परम्परा का पालन करते हुए राजेश जोशी ने अपने लिए एक अलग तरह का साहित्य रचा है जिसमें मुक्तिबोध की मनुष्य जीवन की पहचान और तलाश भी है। नागार्जुन के देहाती और राजनीतिक जीवन के दृश्य-परिदृश्य भी है तो केदारनाथ सिंह के कृषक जीवन का भी समर्थन है। सभी बड़े कवियों की प्रवृतियों का अपने साहित्य में समावेश करना ही साहित्यकार की बड़ी विशेषता होती है।


    राजेश जोशी स्वभाव से बड़े शरीफ किस्म के आदमी है। लेकिन कविता के माध्यम से वह आज के बाजारीकरण के युग में ऐसी व्यंग्य बात कह देते हैं कि समाज की खोखली व्यवस्था का पर्दाफाश हो जाता है। आज का समय भमंडलीकरण, उपयोगितावादी और विज्ञापन का युग है जिसमें मानव जीवन के मूलभूत गुणों का हनन हो रहा है। चाहे वो आपसी सदभावना हो, प्रेम हो, अपनापन हो, रिश्ते - नाते हो, समाज या परिवार हो


    अकेलापन वस्तुतः समकालीन समाज की कुछ विशेष प्रवृतियों के आधार पर हम राजेश जोशी के कविता कर्म को आज के समय के साथ जोड़कर देखेंगे। समकालीन समाज अथवा साहित्य में मध्यवर्गीय जीवन की आशा - अभिलाषाओं का चित्रण, आधुनिक बोध, अके और उदासी, समाज और समय से मोहभंग की स्थिति, राजनीति और विचारों का टकराव, आम आदमी और उसके आम परिवेश का यथार्थ वर्णन, समाज और परिवार के सम्बंधों में विखराव, काम कुण्ठा से ग्रसित और ऊव, वेचैनी, निराशा, तनाव, जीवन के प्रति आसक्ति, ईश्वर से विमखता, आस्था-अनास्था का द्वंद, मन की आंतरिक जिज्ञासाओं का उद्दीपन और भविष्य के लिए असमंजस की स्थिति के साथ साथ जीवन का यथार्थवादी और नग्न रूप। यह तमाम समस्याएं और कारण समकालीन समाज और साहित्य में बराबर देखने को मिलते हैं। इन समस्याओं के उतपन्न होने का सबसे बड़ा कारण है हमारा सामाजिक ढांचा और राजनीतिक व्यवस्था। जिसमें पिसकर आम आदमी इन सभी भयानक समस्याओं के साथ जूझता रहता है। राजेश जोशी का कविता - कर्म और रचना - धर्म भी इसके ही साथ जुड़ा है। जोकि अपने समय और समाज के अत्यधिक निकट है।


    ___ सबसे बड़ा सवाल है किसी भी कवि, लेखक या साहित्यकार के साहित्य में आम जनता की पहचान करना अथवा लोक जीवन की पहचान । आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने भी उस कवि को ही बड़ा कवि माना है जिसके साहित्य में लोक तत्व या लोक चेतना हो, जीवन का बहुमुखी परिवेश वर्णित हो। लोक तत्व समाज के लगभग सभी पक्षों को आगे लाने का काम करता है। यही लोक तत्व या लोक जीवन की पहचान राजेश जोशी के काव्य में मिलती है। चाहे उनकी % बच्चे काम पर जा रहे हैं % कविता हो या % मारे जाएगें % कविता होदोनों ही कविताओं में एक तरफ आने वाले कल का भविष्य अपनी छोटी सी ही उम्र में कल- कारखानों में काम करने के लिए बाध्य है क्योंकि उनके सपने छोटी उम्र में ही बिखर चुके हैं। दुनियादारी के मसलों का जिन्हें अभी तक कोई अंदाजा भी नहीं है वह भी रूढ़िवादी सोच और समाज में घुट - घुटकर जीने के लिए मजबूर है। लेकिन उनके सपनों को, इच्छाओं को और आशाओं - अभिलाषाओं को किसी हद तक साकार और सफल करना राजेश जोशी के काव्य का प्रतिपाद्य है। यथा :


    "बच्चे काम पर जा रहे हैं


    हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह


    भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना


    लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह


    काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?"


    और दूसरी तरफ ऐसे लोगों की भी कोई खैर नहीं है जो निरपराधी है। क्योंकि - जो अपराधी नहीं है, मारे जाएगें । आज का समय इतना यांत्रिक और खतरनाक हो गया है कि उसमें अपराध - निरपराध का कोई भी ना तो ठीक ठिकाने का कानून है ना ही हमारी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था अब निष्पक्ष और तटस्थ है। वह भ्रष्ट होने लगी है। इसीलिए राजेश जोशी कहते हैं कि


    "कठघरे में खड़े कर दिये जाएंगे


    जो विरोध में बोलेंगे


    जो सच सच बोलेंगे, मारे जाएंगे


  सबसे बड़ा अपराध है इस समय निहत्थे और निरपराधी


  होना


  जो अपराधी नहीं होगें, मारे जाएगें!"


  समाज को अपनी पूरी ताकत से छूना और उसकी अभिव्यक्ति आम जन - संवेदना के माध्यम से करना ही लोक तत्व को खोजने का सबसे अधिक सरल तरीका हैलोगों की इसी जन - संवेदना से लोक जीवन का स्वरूप कैसा है? उसका ढंग और ढांचा क्या है? और उसके मूल उत्त्स का कारण क्या है? इसके बारे में लोगों की संवेदनाएं और भावनाएं ही साहित्य के लिए कारगर साबित होती है। लोगों  की इन्हीं संवेदनाओं और भावनाओं को राजेश जोशी ने अपने काव्य में अच्छे तरीके से उभारा है।


    राजेश जोशी का रचना - संसार अपनी प्रौढ़ता में समाज के स्वरूप को उद्घाटित करने का सशक्त ढांचा खड़ा करता है। उनकी लिखी कविताएं या काव्य - संग्रह आज के दौर को अपनी पूरी जानकारी और ताकत से खोजता - खंगालता है। 'समरगाथा', 'एक दिन बोलेंगे ड', 'मिट्टी का चेहरा', 'नेपथ्य में हंसी', 'दो पंक्तियों के बीच' और 'चांद की वर्तनी' इनकी कविताएं और काव्य - संग्रह है। राजेश जोशी का तमाम साहित्य अपने समय और समाज को अभिव्यक्ति देने वाला साहित्य है। उसमें समाज, राजनीति, संस्कृति और लोक - चेतना के साथ साथ आज के यथार्थ ढांचे को बड़ी तरकीब से उजागर किया गया है।


  ___ कवि के रूप में राजेश जोशी लोक जीवन के अत्यंत निकट है। अपने आस पास होने वाली घटनाओं पर पैनी नज़र गडाये रखना इनकी बड़ी विशेषता है। चाहे वो कृषक - वर्ग हो, मजदूर - वर्ग हो, राजनीतिक दलों की दलाली हो, लोक संस्कृति हो, सामाजिक स्थिति एवं परिस्थिति हो, बाल शोषण हो या समय और समाज की किसी भी प्रकार की समसामयिक घटना या समस्या हो ; उस पर राजेश जोशी ने बहुत ही सूझबूझ के साथ कलम चलाई है। सभी विकासात्मक विषयों को अपने साहित्य का माध्यम ही नहीं बल्कि मूल रूप व अंग बनाया है। ताकि लोक जीवन की लोक - संस्कृति और लोक संस्कार को अक्षण्ण रखा जा सकेकाव्य को लोक संस्कार और लोक संस्कति के हाशिये पर ढूंढना राजेश जोशी के काव्य का बड़ा पैमाना है। यही पैमाना इनके पूर्ववर्ती कवि - लेखकों ने इन्हें दिया है, जिसका पालन वह अब भी साहित्य के साथ कर रहे हैं। साहित्य को उसकी जड़ में जाकर ढूंढना और वहीं से अपने कविता - कर्म का रास्ता निकालना, जिसमें लोक परिवेश अपने जीवंत रूप में उजागर हो, साहित्य को लोक जीवन के आधार पर परखने के लिए सबसे बड़ी भूमिका निभाता है


    राजेश जोशी के काव्य में परम्पराओं और संस्कृति का रूढ़िवादी रूप नहीं मिलता है बल्कि उसे एक सीमा के अंदर रखा गया है ताकि वह समाज को भी अभिव्यक्ति दे सके और पूर्वाग्रहों से भी ग्रसित न रहे। क्योंकि “जब कोई भी समाज परम्पराओं, रूढियों व मर्यादाओं से अत्यधिक जकड जाता है, तो उसकी प्रतिक्रियास्वरूप स्वच्छंदता व उच्छंखलता का उन्मीलित होना स्वाभाविक है।"


    लेकिन राजेश जोशी के काव्य में परम्पराओं और मर्यादाओं का साफ़ सुथरा रूप ही देखने को मिलता है। कहीं भी साहित्यिक तत्वों और संस्कृति व संस्कार का अतिरिक्त और अतिशय वर्णन नहीं है। क्योंकि किसी भी रचना का उसकी अपनी सीमाओं और दायरे के अन्दर रहना ही उसे कालजयी सावित करता है। राजेश जोशी कविता में अपनी मान्यता या विचार को थोपते नहीं है बल्कि उसे सबसे पहले अपने आप जीते हैं। फिर कहीं उसे समाज के कठघरे में खड़ा करते हैं। तब जाकर कहीं कविता अपने समय और समाज का दर्पण बनती है। समाज के यथार्थ को तब कहीं जाकर वह लोक - संवेदना के साथ व्यक्त करने में सक्षम होता है। यही लोक - चेतना और लोक - संग्रह - मत राजेश जोशी के रचना - कर्म का मख्य ध्येय है।


    राजेश जोशी में अभी भी साहित्य सृजन की अपार संभावनाएं हैअनेक विविध पक्ष और नवीन आयाम है जिनमें वह अभी भी उपलब्धि प्राप्त कर सकते हैं, और समकालीन साहित्य को एक नयी ऊर्जा और ऊंचाइयों तक पहुंचा सकते हैं। इसी बात को केन्द्र में रखकर समकालीन साहित्य के आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी ने भी राजेश जोशी के बारे में कहा है कि 'राजेश जोशी कविता विधा पर ही अधिक लिखते हैं लेकिन अगर वह आलोचना या अन्य विधा पर भी अपनी काबिलियत आजमाना चाहते हैं तो उनका वह साहित्य भी उनकी कविताओं की तरह ही सार्थक होगा। क्योंकि राजेश जोशी जो भी लिखेंगे वह साहित्यिक ही होगा।'


    राजेश जोशी आज की पीढ़ी के लेखकों और कवियों के लिए इस बात से प्रेरणा का स्त्रोत है, कि राजनीति और समाज के भूमंडलीय, बाजारीकरण, उपयोगितावादी और प्रतिस्पर्धा के दौर में किस तरह से कविता में साहित्यिक तत्व, मानवीय गुण, आधुनिक भाव - बोध, संस्कार, परम्परा और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि एवं परिवेश आदि को जीवित रखा जा सकता है। साहित्य समाज सापेक्ष होता है, समाज और समय से विमुखता होना साहित्य का लक्ष्य और लक्षण दोनों नहीं है। वस्तुत - आज के परिप्रेक्ष्य के विविध पक्षों और आयामों के संदर्भ में राजेश जोशी जी का साहित्य समाज को नयी दिशा और सोच देने वाला साहित्य है।आज के युग की तमाम चुनौतियों और परिस्थितियों के बावजूद भी समाज और लोक - चेतना को प्रासंगिकता और प्राथमिकता देना राजेश जोशी के साहित्य की मुख्य कसौटी है।


    संदर्भ :
1. 'राजेश जोशी : स्वप्न और प्रतिरोध' सं. नीरज


2. 'बच्चे काम पर जा रहे हैं' - राजेश जोशी ( कविता )


3. 'मारे जाएगें' - राजेश जोशी ( कविता )


4. 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' - आचार्य रामचंद्र शुक्ल


5. 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' - सं. डॉ. नगेन्द्र


                                                        सम्पर्क : समरहिल, शिमला-१७१००५, हिमाचल प्रदेश मो. नं. : 8580715221