समीक्षा - मल्लिका : जिसके लिए भारतेन्दु के दिल में तो जगह थी, लेकिन घर में नहीं - प्रो. मुश्ताक अली
"मल्लिका" मशहूर कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ का २०१९ में प्रकाशित उपन्यास है जो नवजागरण के अग्रदूत भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र की प्रेमिका के जीवन पर आधारित है। जो पाठक भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र के जीवन और साहित्य से परिचित होंगे. वे मल्लिका और माधवी से अपरिचित न होंगे. लेकिन दोनों से बहुत गहराई से परिचित होंगे, नहीं कहा जा सकता। जिन पाठकों ने जुलाई २००७ का 'कथादेश' देखाहोगा, वे मल्लिका के बारे में कुछ और ज्यादा जानते होंगे, लेकिन जिस खूबी के साथ मनीषा कुलश्रेष्ठ ने मल्लिका के व्यक्तित्व में काल्पनिक रंग भरा है उसे पढ़कर आश्चर्य होता है कि भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र के लिए मल्लिका शायद उनकी धर्मपत्नी से बढ़कर रही होगी।
"भारतेन्द समग्र' में चित्रावली के अंतर्गत पृष्ठ १११८ पर मल्लिका के साथ भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जो चित्र छपा है, उस पर चित्र परिचय लगा है-भारतेन्दु हरिश्चंद्र और उनकी प्रेयसी मल्लिका। संभवतः वहीं से मनीषा जी ने मल्लिका की तस्वीर भी अपने उपन्यास के आवरण के लिए ली है। मेवाड़ यात्रा पर निकले भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र ने अपने भाई को मल्लिका की चिंता करते हुए जो पत्र लिखा है, उससे यह बात तो साबित ही होती है कि मल्लिका से उनके संबंधों की बात उनके घरवालों की जानकारी में रही है लेकिन इतनी संक्षिप्त जानकारी से ही उपन्यास नहीं लिखा जा सकता। उसके लिए मनीषा जी ने बनारस से लेकर बंगाल तक के इतिहासभूगोल की कितनी पड़ताल की होगी, एक-एक चीज की परख की होगी, शोध किया होगा और मुनमईन हो गई होंगी, तब इतना गतिशील उपन्यास लिखा होगा। मल्लिका की तरह, माधवी से अपने रिश्तों को लेकर भी भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र के चरित्र पर उँगलियाँ उठती रही होंगी लेकिन भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र ने उसे भी छुपाया नहीं है। श्री बदरी नारायण जी उपाध्याय 'प्रेमघन' को भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र ने माधवी के मकान की रजिस्ट्री हेतु स्वयं पत्र लिखा है (भारतेन्दु समग्र, पृ. १०८५)। समग्र संपादक ने अपनी टिप्पणी में खुद ही लिखा है- “भारतेन्दु जी की एक रखैल थी माधवी। माधवी उसका असली नाम नहीं था। वह किन्हीं किशन सिंह की पुत्री थी। कहते हैं जब हरिश्चंद्र से इसका संपर्क हुआ तब यह मुसलमान वेश्या थी और इसका नाम था आलीजान। हरिश्चंद्र ने इसकी शुद्धि की और उसका नाम रखा माधवी।" (भा.सं., पृ. १०८५)
उपन्यास में जहाँ कहीं माधवी और मल्लिका आमनेसामने हई हैं, वहाँ कुछ डाह और ईर्ष्या भी दिखाई देती है लेकिन क्योंकि भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र की नज़र में मल्लिका कास्थान सदैव ऊँचा रहा है, लगभग उनकी दूसरी पत्नी जैसा इसलिए मल्लिका सब कुछ सहने को तैयार दिखाई गई हैं। कुछ ऐसा ही तनाव मल्लिका को लेकर भारतेन्दु हरिश्चंद्र की धर्मपत्नी मन्नो देवी के मन में रहा है, क्योंकि उन्हें भी लगतारहा है कि भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र एक बंगालन विधवा के जादू में पड़े रहते हैं लेकिन उपन्यास के अंत तक जाते-जाते मन्नो देवी का मन भी कुछ बदला हुआ-सा दीखता है। भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र के देहावसान के तेरहवें दिन पूरे परिवार के समक्ष भरे मन से मल्लिका को संबोधित करते हुए मन्नो देवी कहती हैं- "ये मल्लिका एक बहुत ही सीधी-सच्ची, समझदार और भलीमानस है। मैंने आज तक अपने स्वामी के आस पास बहुत स्त्रियों को देखा समाज में रिश्तेदारी में बहुत से ढंग की स्त्रियाँ देखीं पर मल्लिका जैसी मुझको देखने में नहीं आई। भैया गोकुल, इनकी जो अंतिम इच्छा थी सो थी, मेरी भी यही चाह है, इनकी कंपनी, पांडुलिपियाँ, पुस्तकों का अधिकार और हर माह पचास रूपए की रकम मल्लिका के पास जाए। परिवार में इनका आवागमन और सम्मान उनकी दूसरी पत्नी की तरह हो।" मल्लिका (पृ. १५८-५९) बावजूद इसके मल्लिका को लगता है जब हरिश्चंद्र जी ही नहीं रहे, फिर काशी में क्या रुकना और वह जैसे विधवा होकर काशी आई थी, वैसे ही दुबारा विधवा होकर वृन्दावन चली गई।
'भारतेन्दु समग्र' देखने से यह तो पता चलता है कि भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का संबंध साहित्यकार होने के नाते बंगाल के जिन ख्यातनाम साहित्यकारों और समाजसुधारकों से रहा है, उनमें ईश्वर चंद्र विद्यासागर, बकिम चंद्र चटर्जी आदि प्रमुख रहे हैं लेकिन मनीषा जी ने मल्लिका को बंकिम बाबू की रिश्ते की बहन के रूप में चित्रित किया है। उपन्यास के मुताबिक मल्लिका मेदिनीपुर जिले के केशोपुर गाँव की बताई गई है। उसके पिता मिताई चटर्जी भक्ति गीतों के गीतकार रहे हैं। उसकी बड़ी बहन का नाम शेफालिका चटर्जी और उसके भाई का नाम अनिर्बान चटर्जी को बताया गया है जो क्रांतिकारियों की सहायता करने के आरोप में फरार दिखाया गया है। भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र से पहली मुलाकात में ही मल्लिका ने बंकिम बाबू के बारे में बताया था कि वे मेरे भ्राता हैं। मेरे पिता की मौसेरी बहन के बेटे।' (मल्लिका, पृ. ७६) कंवालपाड़ा में जन्मे बंकिम चंद्र चटर्जी पेशे से डिप्टी मजिस्ट्रेट भले रहे हों नकी पोस्टिंग कलकत्ते से मेदिनीपुर हो गई थी। लेकिन उनकी असली पहचान प्रख्यात बंगला उसे साहित्यकार के रूप में रही है। भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र भी मल्लिका से चौखंभे में स्थित अपने मकान से पहली मुलाकात में बंकिम बाबू की किसी आख्यायिका का 'कवि वचन सुधा' के लिए हिंदी अनुवाद करने की बात तो करते ही हैं, 'कविता वर्धिनी सभा' के फाल्गुन समारोह में उसे आमंत्रित भी करते हैं। मल्लिका ने बंगला मिश्रित हिंदी में सुधी जनों के समक्ष जो स्वरचित कविता सुनाई, उसकी शास्त्रीय संगीत की यशस्वी गायिका हुस्नाबाई सहित सभी ने भूरि-भूरि प्रशंसा की और भारतेन्दु जी ने उसे 'कवि वचन सुधा' में चंद्रिका उपनाम से प्रकाशित भी किया। धीरे-धीरे भारतेन्दु बाबू के मल्लिका से इतने प्रगाढ़ रिश्ते हो गए कि उन्होंने चंद्रिका के नाम पर पत्रिका का नाम ही 'हरिश्चंद्र चंद्रिका' कर दिया। मल्लिका ने भारतेन्दु बाबू के साहचर्य में रहकर इतनी हिंदी सीख ली थी कि भारतेन्दु बाबू के अनुरोध पर मल्लिका ने बंकिम चंद्र चटर्जी के उपनयास 'राधा रानी' का अनुवाद कर डाला। मल्लिका के नाम पर भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र ने पत्रिकाओं के प्रकाशन हेतु 'हरिश्चंद्र मल्लिक एंड कंपनी' शुरू कर दी जिसकी तार्हद 'भारतेन्दु समग्र' से की जा सकती है, क्योंकि उस कंपनी के पैड पर लिखे उनके अप्रकाशित उपन्यास के एक पृष्ठ की छाया प्रति उसमें संकलित है। मल्लिका द्वारा रचित उपन्यास 'कुमुदिनी' के अलावा रूपांतरित उपन्यास 'चंद्रप्रभा', 'पूर्ण प्रकाश (कुलीन कन्या) तथा अनूदित उपन्यास 'सौंदर्यमई' और चंद्रिका नाम से रचे उसके अनेक पदों का उल्लेख मनीषा जी ने किया है जिन्हें उसने गोकुल चंद्र के हवाले कर दिया था और वृन्दावन चली गई थी। लेकिन हिंदी साहित्य के इतिहासों में इन पुस्तकों की कोई चर्चा दिखाई नहीं पड़तीअब जब मनीषा जी ने शोध कर ये कृतियाँ हिंदी जगत के सामने रख दी है, तब यह देखना दिलचस्प होगा कि इनकी नोटिस साहित्योतिहास लेखक कब लेते हैं? मनीषा जी ने मल्लिका के जिस स्वरचित उपन्यास 'कुमुदिनी' को लाला श्रीनिवास दास के परीक्षा गुरू' से पहले का उपन्यास माना है, यदि उन्होंने उसकी कोई तिथि मुकर्रर कर दी होती तो ज्यादा मुनासिब होता! भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र पर राजभक्ति को लेकर जो आरोप लगाया जाता है, उपन्यास में यह सवाल मल्लिका भी उठाती है और भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र उसका गोल-मोल जवाब भी देते हैं। भारतेन्दु और राजा शिव प्रसाद सितारेहिंद के बीच में जो अनबन थी, उसे भी मनीषा जी ने उठाया है और भारतेन्दु बाबू का पक्ष भी उपन्यास में आता है।
उपन्यास को पढ़ते हुए यह तो शिद्दत से महसूस होता है कि मल्लिका के लिए भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र यदि 'प्राणधन' थेतो मल्लिका भी उनके हृदय की धड़कन थी। लेकिन भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र की भी अपनी कुछ सीमाएँ रही हैं जिसके चलते वे मल्लिका से टूटकर प्रेम करते हैं और पत्नीवत रखते भी हैं लकिन उसे अपने घर में जगह नहीं दे पाते। भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र ने यदि अपनी संक्षिप्त और अधूरी आत्मकथा 'एक कहानी : कुछ आप बीती कुछ जग बीती' में कुछ खुलासा कर दिया होता तो उनके जीवन को लेकर जो सवाल उठाए जाते हैं, उनका जवाब मिल जाता लेकिन मनीषा जी ने 'मल्लिका' के जरिए बहुत सारे सवाल भी उठाए हैं और उनका जवाब भी उपन्यास में मौजूद है। बस यह सब जानने के लिए एक बार तो 'मल्लिका' को पढ़ना ही पड़ेगा और ऐसी उपेक्षित प्रेमिका को पुनर्जीवन देने के लिए मनीषा जी को धन्यवाद भी देना पड़ेगा।
उपन्यास : मल्लिका, लेखिका : मनीषा कुलश्रेठ, प्रकाशक : राजपाल, दिल्ली, प्रथम संस्करण : २०१९, मूल्य : २३५ रुपए
सम्पर्क : हिन्दी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश मोबाइल नं. : 9453089608