रिपोर्ट -गाँधी : आचरण की सभ्यता के प्रथम नागरिक - अवनीश यादव,

रिपोर्ट  -    गाँधी : आचरण की सभ्यता के प्रथम नागरिक - अवनीश यादव,


 


          पत्रिका परिवार इलाहाबाद की ओर से २२ अक्टूबर को बाल भारती स्कूल सिविल लाइन्स में 'सृजन सरोकार' के गाँधी विशेषांक का लोकार्पण एवं परिचर्चा का आयोजन किया गया। मंचस्थ थे वरिष्ठ कथाकार नीलकांत, कविआलोचक राजेंद्र कुमार, प्रो. अली अहमद फातमी, सम्पादक गोपाल रंजन, आलोचक डॉ. कुमार वीरेंद्र।


 


इस अंक के अतिथि सम्पादक और कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. राजेंद्र कुमार ने अपनी बात रखते हुए कहा कि 'गाँधी हमारे समय में आचरण की सभ्यता के प्रथम नागरिक हैं। गाँधी ने संयम पर बल दिया। विशेषण से आदमी की पहचान नहीं करनी चाहिए, बल्कि उसके आचरण से उसकी पहचान करनी चाहिए। फरिश्ते से इंसान बनना बेहतर हैपर इसमें मेहनत बहुत लगती है। गाँधी ने कहा था, निष्क्रियता और हिंसा में अगर हमें चुनाव करना होगा तो निष्क्रियता को पसंद नहीं करूंगा। आज हमें गाँधी के बताए सत्य के रास्ते पर चलने के लिए झाड़ नहीं अपितु जान हथेली पर लेकर चलना होगा। आज गाँधी हमारे लिए और भी प्रासंगिक हो जाते हैं जब हमारे ऊपर गलत तथ्य दिन ब दिन थोपे जा रहे हों।


    वरिष्ठ साहित्यकार नीलकांत ने 'सृजन सरोकार' की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह पत्रिका पाठकों के बीच अपना स्थान बना रही है। गाँधी की आलोचनात्मक परिधि पर उन्होंने अपनी बात पाश्चात्य और भारतीय आलोचकों के आलोचकीय नजरिए से की। उन्होंने यह भी कहा कि गाँधी हमारे दुश्मन नहीं हैं। प्रो. अली अहमद फातमी ने कहा कि हादसे जिंदगी को मजबूत बनाते हैं। निडरता और सत्यता ने गाँधी को महात्मा बनाया। गाँधी अग्रेजों से हथियारों से नहीं, संस्कारों से लड़े। उन्होंने सच बोलने की पैरवी की और वकालत को अलविदा कहा। आलोचक डॉ. कुमार वीरेंद्र कहा कि भारतीयता को पहचानना है तो जनता के बीच रहकर ही संभव है। गाँधी इसके अनूठे उदाहरण हैं। इलाहाबाद के संदर्भ में उन्होंने गाँधी के आगमन का जिक्र किया। उन्होंने यह भी कहा कि सृजन सरोकार आज के दौर में रचनात्मक हस्तक्षेप की पत्रिका है। यह न सिर्फ पुराने लेखकों को तवज्जो देती है अपितु नए रचनाकारों की सम्भावनाओं को तलाशने का कार्य भी कर रही है।


    Sl. ५॥ कवि डॉ. लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता पत्रिका पर विभिन्न लेखों के हवाले से बात की। गाँधी और पत्रों के सन्दर्भ में उन्होंने कहा कि यह एक बड़ी बात है कि 'गाँधी जहाँ रहते हैं' बस इतना ही कह देना एक मुकम्मल पता बन जाता है। डॉ. दीनानाथ मौर्य ने कहा कि गाँधी को मिथक से बाहर निकालना जरूरी हैउन्होंने विभिन्न लेखों पर अपनी बात रखीडॉ. मोतीलाल ने छायावाद में गाँधी और प्रेमचंद पर तुलनात्मक बात की। डॉ. विंध्याचल ने कहा कि गाँधी ने अपने भीतर ही क्रोध को पाला पर उसे बाहर नहीं होने दिया। गाँधी का चरखा स्वावलंबन की भाषा है। शिवानंद मिश्र ने कहा कि इस विशेषांक में गाँधी की प्रशंसा ही नहीं, आलोचना भी है। राजनीति में नैतिकता पर गाँधी ने बल दिया।


    आधार वक्तब्य गोपाल रंजन ने दिया। संचालन अवनीश यादव ने किया।


    इस अवसर पर कवि हरिश्चन्द्र पाण्डेय, प्रकाशक उमा शर्मा रंजन, अनिल रंजन भौमिक, प्रवीण शेखर, प्रकाशक साहित्य भंडार विभोर अग्रवाल, कवि श्री रंग, संगम लाल, डॉ. राम मिलन, डॉ. अंशुमान कुशवाहा, डॉ. अनिल कुमार सिंह, डॉ. अनिल यादव, डॉ. ताहिरा परवीन, नीतू यादव, संतोष जैन, तलत महमद, डॉ. एहसान सहित भारी संख्या में शोधार्थी एवं विद्यार्थी मौजूद थे।


                                                                                                                        अवनीश यादव, मो. नं. : 9598677625