कविताएं - घाटी में बुद्ध - मनीषा झा
घाटी में बुद्ध
संसार को जीवन का सार
बतला चुकने के बाद
विश्राम कर रहे थे बुद्ध
घाटी में।
वे उनींदी आँखें और उठे हुए उनके जाग्रत हाथ
बता रहे थे निरंतर
रह गया था जो अनकहा।
सब सुनने के बाद
भरी दोपहर में
हरी छाया में आकर
पहचाना था मैंने
पहचाना था मैंने धूप का असल रंग।
मनीषा झा
संपर्क : प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, उत्तर बंग विश्वविद्यालय, सिलीगुड़ी मो.नं. : 9434462850