कविता - सुना बहुत कि जादूगरी है - राहुल कुमार बोयल
सुना बहुत कि जादूगरी है
मेरे पांव जहाँ भी पड़ते हैं
वहाँ शजर हिज्र के उगते हैं
तुम दे दो एक मुट्ठी मिट्टी
जिसमें वस्ल के पौधे पनपते हैं।
मैं जिस शै को छूता हूँ
वह बुद्ध का बुत हो जाती है
बस चेहरा-चेहरा रहता है
मुस्कान कहीं खो जाती है।
तेरी छुअन में, तेरी लगन में
सुना बहुत कि जादूगरी है
तुम मुझको छूकर पता करो
बूंद बद-दुआ कहाँ पड़ी है
मेरी नजर जहाँ भी पड़ती है
वहाँ काली रात पसरती है
तुम पलकें खोलो, गौर करो
कैसे कली धूप की मरती है।
ये जिस्म जिधर भी मुड़ता है
मेरा साया बहुत अकड़ता है
तेरी उदासी के चर्चे भर पे
शाम का साँचा बिगड़ता है।
तेरे पास के अहसास में ही
सुना बहुत कि जादूगरी है
तुम आके करीब जता दो कि
जीवन है, नहीं धोखाधड़ी है
राहुल कुमार बोयल, सम्पर्क : मो.नं. : 7726060287