कविता - श्रद्धांजलि  - धर्मपाल महेंद्र जैन

कविता - श्रद्धांजलि  - धर्मपाल महेंद्र जैन


श्रद्धांजलि


 


मौत, संवेदनाओं के शब्दों की तरह


घिसी-पिटी हो गई है


एक-दो वाक्यों में सिमट जाती है


और वह स्त्री


मौन में खोजने लगती है अर्थ।


 


सैकड़ों व्यथित लोग


जिन्हें लगता है


उपस्थित होना पर्याप्त था


श्रद्धांजलि के लिए


वे बर्फ-सी जमीं


अपनी अनंत संवेदनाओं को कुरेद कर


आँसुओं में तब्दील करना चाहते हैं


दोनों हाथ जोड़


बुदबुदाते होंठ लिए वे


शोक के चरम पर पहुंचना चाहते हैं


उन्हें लगता है


दुःख एक गणिका की तरह निर्वस्त्र हो कर


उनकी आँखों में उतर आएगा और


उनकी संवेदनाओं को द्रवित कर देगा


ऐसा करने की ज़रूरत नहीं है उन्हें।


 


मन के अंधेरे कोने में


सुबकियाँ भरती वह स्त्री


अपनी अजल आँखों से


किसी को नहीं देख पाती


उसके पोंछ दिए गए सपनों के लिए


प्रार्थनाएँ भ्रम हैं


अर्घ्य और समिधाएँ मात्र धुआँ


 


अपने रंग फिर से भरने के लिए


उसे चाहिए उल्लास का फलक


चाहिए नए विश्वास की तूलिका


 


                                                                                                                             धर्मपाल महेंद्र जैन


                                                            सम्पर्क : 1512-17, अन्नादले ड्राइव, टोरन्टो, MIN2W7, कनाडा, फोन नं. : +4162252415