नीरज नीर जन्म : 14.02.1973 राँची विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातक सद्य प्रकाशित कविता संकलन "जंगल में पागल हाथी और ढोल" पंजाबी, ओड़िया, तमिल, नेपाली भाषाओं में कविताओं का अनुवाद। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से नियमित कहानियों एवं कविताओं का प्रसारण। जल, जंगल और जमीन के प्रति गहरी संवेदना रखने वाले रचनाकर के रूप में ख्याति। आलोचना की कई किताबों में चर्चा ।
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कविता- पहाड़ का नमक - नीरज नीर
पहाड़ का नमक
जंगल से लिपटे पहाड़
किए जा रहे हैं
निर्वसन,
ताकि भजित किया जा सके मान
जैसे नंगी की जाती है स्त्री
पूर्व मान मर्दन के.
पहाड़ की भाषा जो समझते हैं
वे दुरदुराए गए
किनारे खड़े हैं
देख रहे हैं नग्न होना अपना भी
पहाड़ को निगल जाएगी
आदमी की लालसा
जो लील जाना चाहती है सब कुछ
चक्रवाती तूफानों की तरह
पीछे छोड़ निशान तबाही के.
जब तक लगाएगी पृथ्वी,
सूरज के कुछ चक्कर
हो जाएगा अवसान,
शेष रह जाएगा
वहाँ बस
पहाड़ का नमक
धरती हो जाएगी कुछ और बूढ़ी
बिना स्तनों
के उभार के ...
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