कविता - कचरे से बीन रहे हैं सांसें वे - शैलेंद्र शांत
कचरे से बीन रहे हैं सांसें वे वे
बढ़ाइए कदम तेज
रुमाल जरा दबाकर रखिए
मुंह-नाक पर
नहीं, मत देखिए उधर
मितली आ जाएगी
सांसें बीन रहे हैं
जिंदगी चुन रहे हैं
कचरे से
गरीबी के मारे बच्चे
बढ़ाइए कदम तेज
दम घुट जाएगा।
संपर्क : द्वारा, आरती श्रीवास्तव, जीवनदीप अपार्टमेंट, तीसरी मंजिल, 36, सबुज पल्ली,
देशप्रियनगर, बेलघरिया, कोलकाता-700056, पश्चिम बंगाल मो.नं. : 9903146990