कविता - हर तरफ निठारी के दानव - शैलेंद्र शांत

कविता - हर तरफ निठारी के दानव - शैलेंद्र शांत


 


हर तरफ निठारी के दानव


 


वे टॉफी का लोभ दिखाते हैं


तो कभी आइसक्रीम का


कभी कार्टून दिखाने का


तो कभी जादू का खेल


तुम कैसे समझ सकते


कि वे खेलना चाहते हैं ऐसा घिनौना खेल


जिसमें अकल्पनीय असह्य पीड़ा से


पड़ सकता है तुम्हें गुजरना


न तुम चीख सकते हो न किसी को पुकार


वे दानव में तब्दील जाते हैं


निठारी के दानव कहां नहीं


संभल कर मेरे बच्चों


सावधान मेरी बच्चियां


इंसानियत को तार-तार कर देने वाला


यह भयानक दौर है।


                                                               संपर्क : द्वारा, आरती श्रीवास्तव, जीवनदीप अपार्टमेंट, तीसरी मंजिल, 36, सबुज पल्ली,


                                                                   देशप्रियनगर, बेलघरिया, कोलकाता-700056, पश्चिम बंगाल मो.नं. : 9903146990