कविता- चिंता - नीरज नीर
चिंता
भरे जंगल में
अजनबी सा खड़ा एक पेड़
सिहर उठता है
हवा के हल्के स्पर्श से
उसे अपनी शाखाओं पर रेंगते महसूस होते हैं
विषैले बिच्छू,
अचानक डर जाता है
चिड़ियों से,
जानते हुए भी कि
उसे उनसे कितना प्यार है।
वह अपनी पीली पड़ी
जड़ों को गाड़ देना चाहता है
भीतर..... और भीतर,
अपनी शाखाओं को समेट कर
उतर जाना चाहता है
किसी गहरे दलदल में।
उदास फुनगियों पर
लाल-पीले कोपलों को लेकर
रहता है बहुत चिंतित,
इस समाज में एक बेटी के बाप की तरह ...
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