कविता - बादल जो बरस चुके - शरद चन्द्र श्रीवास्तव

शरद चन्द्र श्रीवास्तव जन्म : 11 मार्च 1972 प्रतापगढ़, जनपद, उत्तर प्रदेश शिक्षा : एम ए, पी-एच डी. (अर्थशास्त्र), अवध विश्वविद्यालय सम्प्रति : सहायक आचार्य, अर्थशास्त्र विभाग, दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर प्रकाशन : अर्थशास्त्र से सम्बंधित विषयों पर आधारित शोध पत्र एवं आलेख विभिन्न राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित एवं आकाशवाणी इलाहाबाद तथा लखनऊ से कविताओं का प्रसारण


 


कविता - बादल जो बरस चुके - शरद चन्द्र श्रीवास्तव 


बादल जो बरस चुके


 


नदियां खुश थी,


कि-


उनके पास अथाह पानी था,


पेड़ खुश थे,


कि वे फलों से लदे थे


वे जानते थे,


कि उन्हें अभी,


एकत्र करने होंगे


पानी के पराग,


ठीक वैसे,


जैसे, तितलियां ढूंढती हैं


फूलों के पराग,


सोखनी होगी-


नदी की देह से उठती सुगन्धि,


उतरना होगा-


झीलों के पुष्पासन पर,


सहनी होगी मार-


समुन्दर की कुपित लहरों की,


वे जानते हैं


कि वे -


एक अदद मजदूर हैं,


जब वे समेट लेंगे


भागीरथी की गंगा अपनी देह में,


वो - उतर जाएंगी,


दूसरों का उद्धार करने


और -


वे रीते रह जाएंगे,


धरती खुश थी,


कि, उसके गर्भ में सागर हिलोरें मार रहा था


सिर्फ- दुखी थे,


वे बादल,


जो बरस चुके थे


                                                                                                                                                             मो.नं. : 9450090743