कविता - ऐ दिल! तुझे क्या हुआ है? - राहुल कुमार बोयल

कविता - ऐ दिल! तुझे क्या हुआ है? - राहुल कुमार बोयल


 


ऐ दिल! तुझे क्या हुआ है?


 


यहाँ कोई जन्म नहीं लेता


न आदमी, न औरत, न पशु, न पंछी


जो कुछ जीवित नज़र आ रहा है


वह एक गढ़ा हुआ सच है


देखो ये कितना बड़ा अचरज है


यहाँ बगावत का अर्थ अपनी तरह से पनपना है


और औरत को तो उगना भी मना है


वह, यहाँ केवल उगाने वाली बंधुआ है


ऐ दिल! पर तुम्हे क्या हुआ है?


तू तो इस मक्कारी में अच्छा भला है।


 


आस-पास आवाजें नहीं, चुभन हैं


जहाँ खामोशी है


वहाँ भी उदासियों के ही जश्न हैं


जिधर वीराना उगा है


वहाँ जिंदगी के नाम पर धूल है


जहाँ घने जंगल बिखरे हैं


वहाँ बेतरतीबी के सूखे हुए फूल हैं


प्यासा कोई नहीं है,


एक छटपटाता हुआ कुंआ है


ऐ दिल! पर तुम्हे क्या हुआ है?


तू तो इस अय्यारी में अच्छा भला है।


 


तारों पर झूली हुईं हैं साँसे


छतों पर आत्महत्या के विचार घूम रहे हैं


कमरों के भीतर सोई है चरित्रहीनता


आदमी आईनों में खुद को ही चूम रहे हैं


कुछ स्त्रियों में एक आक्रोश है


पर उसमें भी इतनी बनावट है कि


अक्सर उनके स्त्री होने पर ही संदेह हुआ है


ऐ दिल! पर तुम्हे क्या हुआ है?


तू तो इस खुमारी में अच्छा भला है।


 


हथेलियों पर छुरियों के अफ़साने हैं


तलवों पर फूलों का खून लगा है


पीठ पर धोखों के गीत दर्ज हैं


छातियों में अफ़सोस भरा है


इतनी बदसलूकियाँ हैं आँखों में


कि आँसुओं ने नमक त्यागा हुआ है


अय दिल! पर तुम्हे क्या हुआ है?


तू तो इस बीमारी में अच्छा भला है।


                                                                                              राहुल कुमार बोयल, सम्पर्क : मो.नं. : 7726060287