कविता - आदमी होने का इतिहास - धर्मपाल महेंद्र जैन

कविता - आदमी होने का इतिहास - धर्मपाल महेंद्र जैन


आदमी होने का इतिहास


 


उन्होंने बताया मैं हिन्दू क्यों हूँ


उन्होंने बताया मैं मुस्लिम क्यों हूँ


उन्होंने बताया मैं सिख, ईसाई, बुद्ध या जैन क्यों हूँ
वे नहीं बता सके कि मैं आदमी क्यों हूँ।


 


मैं प्रश्नवाचक-सा खड़ा-अड़ा रहा


अपनी अस्मिता जानने के लिए


वे धर्मशास्त्र, दर्शनशास्त्र, कामशास्त्र


और शस्त्र खोल मुझे बताते रहे


मैं क्या हूँ, कौन हूँ


आदि से हूँ उनके साथ


उनके मुहावरों, उनकी भाषा, उनके सोच में


और वे तब से लिखते रहे हैं मेरा इतिहास


जो कभी था ही नहीं।


 


मैंने कहा मत होओ परेशान


जो नहीं है उसे क्या सिद्ध करना


मैं तुम्हारे सामने हूँ आज


तुम मुझे अब कर सकते हो परिभाषित


वे ताड़ते रहे मुझे और बोले


आदि से जो कोई रहा मनु


कुछ था ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र जैसा


वह केवल आदमी नहीं था


यहाँ आदमी होने का कोई इतिहास नहीं है।


                                                            धर्मपाल महेंद्र जैन


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