कविता-  तुम्हारी याद का बौर -  माधुरी चित्रांशी  

कविता-  तुम्हारी याद का बौर -  माधुरी चित्रांशी  


तुम्हारी याद का बौर


 


आज तुम्हारी याद का बौर,


फिर उग आया है।


महक बहुत है,


क्योंकि-


तुमने लगाया है।


तुम्हारी रूह नया रूप लेकर,


फिर आई है।


ताजगी बहुत है,


क्योंकि-


तुम्हारी परछाईं है


 


अंधेरी दुनिया थी,


था जर्रा-जर्रा अंधकार।


उम्र बन गई थी


एक लम्बा इन्तज़ार।


तुम्हारी याद के दीपक ने,


मेरे दर्द के दीपक को-


जलाया है।


रोशनी बहुत है,


क्योंकि-


तुमने जलाया है।


कम न हुई-


सुगंध की केसर,


झरती रही रातभर।


हार गया दर्द भी,


मन की सतरंगी-


आँच से।


जलन बहुत है।


क्योंकि-


तुम्हारे विरह की अग्नि ने


जलाया है।


 


आज तुम्हारी याद का बौर


फिर उग आया है।


महक बहुत है।


क्योंकि-


तुमने लगाया है।


                                   माधुरी चित्रांशी