कविता - तन्हा जिन्दगी - माधुरी चित्रांशी

कविता - तन्हा जिन्दगी - माधुरी चित्रांशी


 


तन्हा जिन्दगी


 


तनहा तनहा सी जिन्दगी,


चुभती रहेगी...


जब तक जियेंगे,


तुम्हारे बिना।


न जी ही रहे हम,


न मर ही रहे हैं।


बस जिये जा रहे हैं-


तुम्हारे बिना।


 


हर साँसों में तुम हो,


ख्यालों में तुम हो।


भीगी पलकों की-


आँसू की धारा में तुम हो।


काँटों भरे इस,


जीवन के पथ पर,


बुझते चिरागों का-


बहाना भी तुम हो।


 


साँसें हैं बोझिल,


घायल हैं अरमां।


झड़ी आँसुओं की


समन्दर बन गई है


थोड़ी सी सुलगन,


थोड़ी सी सिहरन,


तुम्हारी यादें ही जीने का,


सबब बन गई हैं।


 


अधूरी है तमन्ना,


अधूरे हैं सपने।


तुम्हारे लिये जो-


हमने बुने थे।


कोई तो बता दे कि


-कैसे जियें हम-


यह बेरंग ज़िन्दगी,


तुम्हारे बिना।


 


तनहा-तनहा सी जिन्दगी,


चुभती रहेगी-


जब तक जियेंगे-


तुम्हारे बिना।


 


                       माधुरी चित्रांशी