कविता - सूनापन - माधुरी चित्रांशी

कविता - सूनापन -  माधुरी चित्रांशी  


 


सूनापन


 


तुम्हारे बिना ज़िन्दगी का-


ये सूनापन... ये सूनापन,


मेरा अपना है।


इसको मेरा ही


रहने दो।


घायल मन के-


रिसते घावों को,


बहते हैं तो,


बहने दो


ये सूनापन-


मेरा अपना है।


इसको मेरा ही-


रहने दो।


 


ये दर्द भी मेरा,


ये जलन भी मेरी।


उजड़े ख्वाबों की-


तड़प भी मेरी।


इस तड़पन को-


और न छेड़ो।


इसको मेरा ही,


रहने दो।


ये सूनापन,


मेरा अपना है,


इसको मेरा ही,


रहने दो।


 


रेत सा बंजर,


हो गया जीवन,


इसको ऐसे ही,


रहने दो।


बंजर जीवन की


प्यास न बुझेगी,


मुझको प्यासा ही,


रहने दो।


ये सूनापन,


मेरा अपना है।


इसको मेरा ही,


मेरा अपना है।


इसको मेरा ही,


रहने दो                   


                                     माधुरी चित्रांशी