कविता- संदेश - माधुरी चित्रांशी
संदेश
अरमानों की मिट्टी और,
यादों की खाद डालकर,
तुम्हारे लिये पनपते-
अपनी ममता की बेल को,
लगा दिया है मैंने,
अपने-
मन के आँगन में।
इस उम्मीद से कि-
बादलों में छिपकर बैठी,
तुमसे कभी जाकर मिल जाये
चूम ले तुम्हारे कदमों को,
और-
एक संदेश-
मुझे भी दे-दे,
तुम्हारे वहाँ होने का।
शायद! तुम्हें भी-
तरस आ जाये मुझ पर,
और एक बार आकर-
मिल लो गले मुझसे
कर दो संचार प्राणों का,
मूर्छित से पड़े-
इस निर्जीव शरीर में,
जो केवल काया मात्र है।
जीवन का कोई,
निशान नहीं।
साँस लेती हुई ज़िन्दगी में।
भावना का-
कोई उद्गार नहीं
जीने को तो जी रही हूँ,
मगर जीने का-
कोई उल्लास नहीं।
इसीलिये........
अरमानों की मिट्टी,
और
यादों की खाद डालकर,
तुम्हारे लिये पनपते-
अपनी ममता की बेल को
लगा दिया है मैंने,
अपने-
मन के आँगन में।
माधुरी चित्रांशी