कविता - परियों की रानी - माधुरी चित्रांशी

कविता - परियों की रानी - माधुरी चित्रांशी


 


परियों की रानी


 


परियों की रानी सी,


बेटी हमारी।


कहाँ छिप गई तुम,


सितारों में जा के?


अभी तो तुम्हारी,


कहानी थी अधूरी,


रूक क्यों गई तुम,


बयां करते-करते?


 


ऐसी क्या थी ख़ता,


जो दे दी ऐसी सजा।


दुनिया ही सबकी,


बरबाद कर दी।


यह भी न सोचा कि-


हम क्या करेंगे?


कैसे जियेंगे-


तुम्हारे बिना?


 


न आवाज़ ही दी,


न ही कुछ बताया।


न सपनों में ही आई,


न गले ही लगाया।


न कुछ हम ही समझ पाये।


न तुमने कुछ समझाया,


बस अलविदा कह दिया,


यूँ ही सोते-सोते।


 


परियों की रानी सी,


बेटी हमारी।


कहाँ छिप गई तुम,


सितारों में जा के?


अभी तो तुम्हारी,


कहानी थी अधूरी।


रूक क्यों गई तुम,


बयां करते-करते।


                                 माधुरी चित्रांशी