कविता - एक थी आशी  - माधुरी चित्रांशी - 

कविता - एक थी आशी  - माधुरी चित्रांशी - 


एक थी आशी


 


एक थी आशी, राजकुमारी


भोली-भाली, प्यारी-प्यारी


नदियों जैसी कल-कल करती


तितली जैसी उड़ती फिरती।


 


पापा की थी वो राजदुलारी,


माँ की नाजों से पाली कली


भाई के आँखों की तारा थी वह तो,


बहना की प्राणों से प्यारी सखी।


 


फिर एक दिन, एक राजा आया,


ले गया उसको पलकों पे बिठाकर


दिन बदला और वह भी बदली


दुल्हन बनकर और संवर गईं।


 


कंगन, टीका, झांझर, पायल,


छन-छन कर इठलाती फिरती।


गोद में थे अनमोल रतन दो,


थकती नहीं थी बलायें लेकर।


 


पर किस्मत को रास न आया,


ले गया सबसे हाथ छुड़ाकर


और हम रोते रहे, बस रोते रहे


कतरा-कतरा जिन्दगी जीते रहे,


बस जीते रहे।


 


एक थी आशी, राजकुमारी।


भोली-भाली, प्यारी-प्यारी।


नदियों जैसी कल-कल करती,


तितली जैसी उड़ती फिरती।


 


माधुरी चित्रांशी