कविता - अक्सर - माधुरी चित्रांशी
अक्सर
चौंक कर अक्सर,
उठ जाती हूँ मैं,
गहरी नींद से।
लगता है-
तुमने आवाज़ दी है।
मन्द हवाओं की,
सरसराहट में-
तुम्हारी मस्त हँसी,
और-
साँसों की खुशबु,
कानों में मेरे-
कुछ बूंदे शहद की,
घोल जाती हैं।
ओस के बूंदों की-
शीतल सी छाया,
जैसे-
घायल मन को मेरे,
सपनों में तुम्हारी,
फिर से सुला जाती हैं।
और मैं-
तुमसे मिलने की चाहत में,
कहीं खो जाती हूँ।
पलकें बन्द कर,
फिर सो जाती हूँ।
सपनों में तुमसे-
मिलने के लिये दोबारा।
तुम्हारे साँसों की आहट-
सुनने के लिये दोबारा।
लगता है-
तुमने आवाज दी है।
चौंक कर अक्सर!
उठ जाती हूँ मैं,
गहरी नींद से।
लगता है-
तुमने आवाज दी है।
- माधुरी चित्रांशी