व्यंग्य  - ड्रैस कोड - मदन गुप्ता सपाटू
व्यंग्य  - ड्रैस कोड - मदन गुप्ता सपाटू

 

 

       सेवानिवृति के बाद ज़िंदगी की दूसरी पारी का पूरा लुत्फ चल रहा था। सुबह आराम से उठना, कुर्ते पायजामें और चप्पलों में इजी रहना। सीनियर सिटीजन्स के खेमों में उठना बैठना, बतियाना, नए नए शेर गढ़ना, सुनना- सुनाना, गोष्ठियों,  कवि सम्मेलनों, मुशायरों में जाना, म्यूजिकल कार्यक्रमों आदि में शिरकत करना , हर प्रोग्राम के 'द् एंड' में  मुफ्त में चाय पानी , लंच - डिनर वगैरा वगैरा के आनंदमयी दौर से गुजर रही जिंदगी में एक दिन , अचानक एक इन्वीटेशन ने सारा मजा किरकिरा कर डाला ।

 

      एक बहुत ही उच्च सामाजिक संस्था का निमंत्रण आया कि शहर के एक सबसे बड़े क्लब में आयेजित उनके फंक्श्ान मंे आप कोरडियली इनवाइटिड हैं जहां तीन राज्यों के राज्यपाल शामिल होंगे। कार्ड में समय पर पहुंचने, 'स्टे फार डिनर ऑफटर प्रोग्राम'  की आकर्षक ऑफर भी थी। साथ ही मोटे अक्षरों में  ड्रेस कोड लिखा था कि आप फार्मल ड्र्ेस यानी   -काले , नीले या डार्क ग्रे सूट, बूट और टाई में ही आएं वरना अंदर जाने नहीं दिया जाएगा।

 

आफिस टाइम के सूट , बूट , आस्मानी शर्ट और टाई की ढुंढाई में रात दिन एक कर दिया। ट्रंक , अटैचियां, आल्मारियां उल्टा डालीं और ड्रेस कोड का रॉ मेटीरियल मिल गया। श्री मती जी ने झट से धोबी से सब प्रेस व्रेस करवा लिए, जूते हमने खुद डस्टर से चमका लिए क्योंकि जूते  पॉलिश किए एक मुदद्त  हो चुकी थी। चप्पलों से ही काम चल जाता था। 

 

 फंक्शन में जाने के लिए आधा घंटा ही बचा था । हमने सोचा ऐन टाइम पर पहनेंगे ताकि करीज वरीज बनी रहे। इधर हमारे सीनियर सिटीजन ग्रुप के मैसेेज मोबाइल पर  टनटनाने  लगे- आन द वे,...... पिकिंग अप एट सेवेन शार्प .....आदि आदि।

   शर्ट तो किसी तरह फंस गई। टाई भी गलबन्घन हो गई। जैसे ही पैंट को ऊ पर करके देखने लगे तो  पता चला कि इतने सालों में कीड़ों ने उसके पिछवाड़े छोटे छोटे रोशनदान बना डाले हैं।

 

       हम घबरा गए कयोंकि कोई बेमेल पैंट भी नहीं डाल सकते थे। नो एंट्र्ी का बोर्ड आखों के आगे तैरने लगा। श्रीमती जी ने हौसला बंधाया कि ये सब आपके कोट के पीछे छुप जाएगा, पहनो तो सही। अब दूसरी मुसीबत आन पड़ी। जब पैंट पहनने लगे तो उसने कमर के ऊ पर आने से इंकार कर दिया। यों तो हम डेली वाक पर जाते थे लेकिन दोस्तों की सोहबत में पेट का क्षेत्रफल कब बढ़ गया ,इसका पता इसी दिन चला वरना सब हमें हमेशा फिट एंड फाइन ही बताते रहे। हम पेट और पैंट के द्वंद में फंस गए।  किसी तरह पैंट चढ़ाई तो बैल्ट नारज हो गई। आज हमें पायजामें की सादगी और उसके नाड़े पर गर्व महसूस हुआ कि दोनों आपको किसी भी उम्र और साइज में कैसे एडजस्ट करते रहते हैं। श्रीमती जी ने एक सुए से बैल्ट के आखिरी सिरे से आधा इंच पहले एक सुराख कर दिया। किसी तरह हम अपने आफिशियल सूट में फंसे। बूट तो पैरों में आ गए पर फीते बांधने और  उंगलियों  के बीच पी. ओ .के जैसी स्थिति थी। पैर तो हमारे ही थे पर अपने ही हाथ वहां तक नहीं पहुंच पा रहे थे । बीच में  पेट आड़े आ गया। हमें अब चप्पलों की सादगी पर गुस्सा आया कि रिटायरमेंट के बाद ,कैसे उन्होंने हमारी आदतें बिगाड़ दी। जैसे तैसे श्रीमती जी ने चरणवंदना करने के अंदाज में जूतों के फीते कस दिए। कमर पहले ही कस दी थी। साथ ही हिदायत दी कि  खाने पीने के चक्कर में ज्यादा इधर उधर नाचना नहीं। 

       बाबू रामलाल पांच मिनट पहले ही धमक गए और अपने चिरपरिचित अंदाज में चिल्लाए- अमां यार आज भी लेट.... और बोले- आज तो आफिस के बॉस लग रहे हो।  डाई वाई करके मूछें भी काली कर लेते तो एक बार गवर्नर भी शरमा जाता।  हमने अपनी पैंट वाली प्रॉब्लम बताई कि एक तो उसमें छोटे छोटे रोशनदान हैं और टाईट इतनी कि कभी भी इज्जत जा सकती है। बााबू रामलाल ने एक दक्ष पुलिस आफिसर की तरह हमें आश्वासन दिया कि तुम चिंता न करो। हम तुम्हें जेड प्लस से भी ऊ पर की सिक्योरिटी देंगे। तुम बीच में रहना हम पांच प्यारे तुम्हारे इर्द गिर्द घेरा बना के  चलेंगे। अगर कुछ हो भी गया तो संभाल लेंगे।

 

      किसी तरह वे सब हमें अपनी कार में लोड कर के क्लब में ले गए और वहां एक सोफे पर सजा दिया। हिदायत भी दे गए कि उठना नहीं , यहीं जमे रहना वरना भेद खुल सकता है। मुख्य अतिथि से मिलाने के लिए हम अपनी जेड सिक्योरिटी में तुम्हें ले चलेगंे ताकि इज्जत ढंकी रहे।

 

       हाल में लोग वार्म अप होते रहे , गले वले मिलते रहे, िड्र्ंक विंक हाथ में लिए एक दूसरे में मिक्स होते रहे । वेटर उड़ने वाले  हनुमान जी की मुद्रा में इधर से उधर ट्रे लेकर उड़ते रहे पर हमारे पास से ऐसे गुजर जाते जेसे छेोटे स्टेशनों से शताब्दी। कोई हमारी तबियत पूछने लगता तो कोई , बैठा देख घुटने रिप्लेस करवाने की सलाह देता।  टायलेट तक जाने का रिस्क नहीं ले पा रहे थे। बहुत सी हमउम्र बीवियों का कारवां इधर उधर गुजरता रहा और हम गुबार देखते रहे। वेटर हाथों में खाने पीने का सामान हाथों में लेकर ऐसे फुर्र होते जा रहे थे मानो 26 जनवरी की परेड में आए हों। 

 

थोड़ी देर में एक घोषणा हुई ओैर तीनों राज्यपाल एक एक करके पधारे । सभी लोग उठ उठ कर अभिवादन कर रहे थे सिवाय हमारे। कईयों ने समझा हम वी. वी.  आई  पी. हैं जो इतनी बड़ी हस्तियों के सामने भी खड़े नहीं हुए।

 सीनियर सिटीजन्स का सम्मान समारोह आरंभ हुआ। सब एक एक करके मंच पर जा रहे थे औेर सम्मानित हो रहे थे। हमारा भी नाम पुकारा गया। अब धर्म संकट था। कहीं उठते ही सम्मानित होने की बजाए अपमानित होने के चांसेज ज्यादा ब्राईट लग रहे थे। जरा सी कोशिश की पर हिम्मत जवाब दे गई। 

 

    एक राज्यपाल महोदय ने हमारी मजबूरी देखते हुए, सारे प्रोटोकोल को तोड़ते -फोड़ते मंच से उतर कर सीधे हमारी ओर मीमेंटो और शॉल लेकर आ गए और खटाक से 'आन द् स्पाट' सम्मानित कर दिया ।  कैमरों की फलैशें चमकी, सारा असला हमारे इर्द गिर्द जमा हो गया।  मीडिया हम जैसे वरिष्ठ नागरिक को अति सम्मानित जीव समझ बैठा। अगले दिन हर अखबार के फ्रंट पेज पर हमारी फोटो छपी हुई थी जिसमें राज्यपाल महोदय की इस बात के लिए  बहुत तारीफ की गई थी।

 

फटी पैंट और निकला हीरो .......जैसे हम खुद को महसूस कर रहे थे।

 

अब वह ऐतिहासिक पैंट हमारे ड्राईंग रुम की दीवार पर ऐसे टंगी है जैसे पिछले राजा महाराजाओं के महलों में बंदूकें, तलवारें, हिरण या शेर के मुखाटे या फिर आज के दौर में लोग स्मृतिचिन्ह , शील्ड या कप सजा लेते हैं।

 

 

                                   - मदन गुप्ता सपाटू, ,458, सैक्टर 10, पंचकूला-134109 ,हरियाणा।

                                    मो- 98156 19620