कविता- समय की पीठ पर - मुकेश कुमार, शोधार्थी

कविता- समय की पीठ पर - मुकेश कुमार,  


                                                          शोधार्थी (एम. फिल), हिन्दी विभाग, अम्बेडकर भवन हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय


 


सिर्फ मैं ही जानता हूँ


कि कितने निशान है मेरी पीठ पर


जब समय मुझे नोंच रहा था अकेला,


मैं तो किसी को बताता नहीं


अगर अपने समय में


आ जाऊँ तो,


सभी लोगों की पीठ पर


एक दिन चुपके से घोंप दिए जाएगें खंजर


और उन्हें छोड़ दिया जाएगा


सिरफिरे आदमी घोषित करके,


 


कितना मुश्किल है


बेवक्त पीठ पर लादे हुए अनचाहे सामान को


जिसकी न तो हमें जरूरत है


और न ही समझ


हम उधर ही मुड़ जाते हैं


जिधर वो झोल खाता हुआ गिरता है बार बार


फिर भी तमाम जिम्मेदारियों और परेशानियों के होते


हम उसे पीठ से नहीं उतार सकते,


समय को पीठ से उतारना


आज के युग की सबसे बड़ी विडम्बना है!


और सबसे बड़ा सवाल है कि


उसने पीठ पर लद-लद कर


हर आदमी को


अपने वजनदार भार से बिलकुल दबा दिया है!


                                                                    सम्पर्क : समरहिल, शिमला-१७१००५, हिमाचल प्रदेश मो. नं.: 8580715221