कविता - गुलाब की पंखुड़ी- -गौरव वाजपेयी "स्वप्निल"


कविता - गुलाब की पंखुड़ी- -गौरव वाजपेयी "स्वप्निल"
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गुलाब की पंखुड़ी


 


गुलाब की एक पंखुड़ी
मिल गई अचानक
जमीन पर पड़ी
पर खिली
सुगन्धि यथावत
हाथ लगी
तो
महक उठे हाथ


चहक उठी वो
तुम ही तो थे
जिसकी थी तलाश
युगों-युगों से
गिरी रही
पड़ी रही
पर
मरी नहीं
खिली रही
तुम्हारे ही इंतज़ार में
मिट्टी में मिली नहीं
धूल में सनी नहीं
बरकरार रही
सिर्फ़ तुम्हारे लिए


तुम न आते
तब भी
आँखें खुली ही रहतीं
द्वार पर लगी रहतीं
तुम ही तो हो मेरा वजूद
तुम बिन मैं
कहाँ हूँ गुलाब
खो देती रंग
खो देती आब


अब आ गए हो
तो ले लो मुझे
खो जाऊँ
सो जाऊँ
पलक मूँद कर
जागी हूँ युगों-युगों
सिर्फ तुम्हारे
अब सो जाऊँगी
तुम्हारी हो जाऊँगी


 
 


                                                                            सम्पर्क - गौरव वाजपेयी "स्वप्निल",C/O श्री संजीव गौतम,521, गली नम्बर 8
                                                                            साकेत, मुज़फ्फरनगर (उत्तर प्रदेश)-251001,मोबाइल -8439026183, 7983636782