कविता - अतीत के साये से - -गौरव वाजपेयी "स्वप्निल"
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अतीत के साये से
कोयल सी इस डाल उस डाल मंडराती
या फिर डाल के पत्ते सी हवा में लहराती
एक ध्वनि गूँजती तो पता चलता कि तुम हो
पत्ते खड़खड़ाते तो पता चलता कि तुम हो
हवा के साथ उड़ती धूल में
कहीं छिपे हैं तुम्हारे पदचाप
तुम्हारे आने की आहट से
धड़क उठता दिल
लगता कि निकलकर गिर जाएगा बाहर
पर तुम्हारी लहराती लट लेती थाम
चेहरे पर मुस्कान अविराम
या कि तैरती सी खामोशी
या कि एक धीर-गम्भीर मुद्रा
सहमा हुआ मैं
आतुर सा निहारता ही रहा
और तुम हवा सी लहराकर निकल गईं
सम्पर्क सूत्र- गौरव वाजपेयी "स्वप्निल", C/O श्री संजीव गौतम ,521, गली नम्बर 8
साकेत, मुज़फ्फरनगर (उत्तर प्रदेश),-251001
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