बाल कविता- **जंगल में मंगल* - मईनुदीन कोहरी
*जंगल में मंगल*
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नाचे भालू पूंछ हिलाए।
चतुर लोमड़ी शीश नवाए।।
चूहा बैठा ढोल बजाए।
नन्ही चिड़िया गीत सुनाए।।
जंगली भैंसा दौड़ लगाए।
बन्दर सबको नाच नचाए।।
बिल्ली बैठी ताक लगाए।
शिकार फिर हाथ न आए।।
सारे पक्षी एक सुर गाए।
जंगल में मंगल हो जाए।।
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मईनुदीन कोहरी, नाचीज बीकानेरी, मो.9680868028