कविता - ज़मीरों की बुवाई का वक्त क़रीब आ पहुँचने वाला है,- जुगेश कुमार गुप्ता  

कविता - ज़मीरों की बुवाई का वक्त क़रीब आ पहुँचने वाला है,- जुगेश कुमार गुप्ता


 


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ज़मीरों की बुवाई का वक्त क़रीब आ पहुँचने वाला है,


 


जहाँ हर मजदूर, हर किसान,


खेतों में अन्न की उपज कम करेगा,


अब तख़्तो- ताज को ढकेलने के लिए,


 


रग़ों में गर्म लहू को धूप मे सेककर, 


उबाल लाने के लिए तैयार होगा,


हँसिया, फावड़ा, हल- बैल लेकर,


धूप में तपे बदन को ढाल बनाकर,


विशाल जन- समूहों को बलि-वेदी पर,


होम होने के लिए एकत्रित होना पड़ेगा,


 


वक्त क़रीब है, 


गुज़री नस्लों को जवाब देने के लिए,


आने वाली पीढ़ियों को घुटन से बचाने के लिए,


अब गुज़री मौत पर खुशियाँ मनाने का वक्त क़रीब है।


                                 जुगेश कुमार गुप्ता, शोध छात्र, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, 9369242041


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