कविता -   खामोश न हों अहमद भाई - प्रमोद कुमार


 


कविता -   खामोश न हों अहमद भाई - प्रमोद कुमार

 

 

  खामोश न हों अहमद भाई 

 

 

वर्षों से मेरे घर दूध ला रहे अहमद भाई

वह आते तो उनसे पहले हमतक उनकी बोली पहुंच जाती

 

वह पूछते हमारा हाल

दूध के साथ

उनके डब्बे में जितना अटा होता  

और अपने नपने से जितना वह निकाल सकते

 

वह निकालते अपने देशों के हाल,

महंगाई, खली-चोकर के भाव,

अपना स्वास्थ्य, मवेशियों की दवाएं  

 

 वह आते ही मेरी बेटी को ज़रूर पुकारते

और घर में तत्काल उपस्थित हो जाती बिट्टू

“अंकल जी, आज मेरे हिस्से का दूध नहीं देंगे क्या”

 

 वह चिर परिचित अंदाज़ में

जोर से खोलते ढकन

जोर-जोर से हंसते अहमद भाई,

 

हंसी ऐसे झरती    

जैसे डब्बे में हंसी का कोई झरना छुपा रखा हो    

 

 इधर कुछ दिनों से अहमद भाई चुप-चुप आ रहे

 

लगता है वह नहीं, ठहरी हुई कोई अनजानी चीज़ आ रही है. 

 

अहमद भाई देख रहे

उनकी जुबान के निकाले जा रहे कैसे बिन बोले अर्थ

वह मुंह नहीं खोल रहे

 

वह डरें हैं कि किसी के लिए मुंह से दुआ निकली तो गद्दार

किसी की खैरिअत पूछी तो हत्यारे करार दिए जायेंगे  

 

अपनी ख़ास जुवान से डरे

ख़ामोश हैं अहमद भाई

 

 उनकी चौधियाई आँखें पूरी तरह खुल नहीं रहीं

जैसे उन पर हजारों सर्च-लाइटें पड़ रही हों  

 

वह डरे हुए हैं अपने नाम से

डरे हुए हैं अपने कुरते पाजामे से, अपनी दाढ़ी से

 

उनके साफ पहनावे पर टांके जा रहे खून के गहरे दाग

 

किसी भी वक़्त, ठांव-कुठांव

बुरी तरह पहचान लिए जायेंगे

और फिर क्या-क्या  होगा उसकी कल्पना कर  

डरे हुए हैं अहमद भाई

 

 

 

वह डरे हुए हैं अपनी गायों से

उनकी गायें कभी चौखट से बाहर नहीं गयी थीं ,

अचानक वे दाखिल हो गयीं हैं राजनीति में

 

अहमद भाई के हाथों से सरकते जा रहे गायों के पगहे,

आँखों के सामने उनकी नाद से लुट रहीं उनकी गायें

 

एक घमासान में हैं अहमद भाई  

 वह आज तक मेरे घर चुप्पी कभी नहीं लाये थे

 

 नहीं, अहमद भाई नहीं, 

आप बोलिए

 

बोलिए

कि बेटियों की हंसी बनी रहे मेरे घर में

 

 




                                                     प्रमोद कुमार,,ई 120, फर्टिलाइजर कालोनी,गोरखपुर 273007

                                                    मो न 9415313535