कविता - कठुआ होता रहेगा , - आशिष मिश्र
कठुआ होता रहेगा
कठुआ होता रहेगा
जैसे विशाखा हुआ, फिर निर्भया, और अब कठुआ
कलम की धार पैनी रखिये
मोमबत्तियाँ जलाये रखिये
कठुआ होता रहेगा
कठुआ होता रहेगा
जब तक बेटियाँ सीखेंगीं
नज़रें झुकाकर चलना, चुपचाप सुन लेना
सौम्य, सुशील और कोमल होना
जब तक कठोरता, आक्रामकता, क्रोध, प्रतिकार
केवल पुरुषों के आभूषण बने रहेंगे
कठुआ होता रहेगा
कठुआ होता रहेगा
जब तक इंद्र के दरबार में अप्सराएँ नाचेंगीं
और नेक काम के बदले जन्नत में हूरें मिलेंगी
जब तक द्रौपदी चीखेगी मदद को
और कृष्ण ही उसकी लज्जा बचाते मिलेंगे
न कि काली या दुर्गा
जब तक सीता देती रहेगी अग्निपरीक्षा राम की अनुमति से
और जब तक धर्म की ये पुरुषत्व व्याख्याएँ नहीं बदल दी जायेंगीं
कठुआ होता रहेगा
कठुआ होता रहेगा जब तक
न्याय के दरबार सबूतों, गवाहों
कार्यवाहियों, कानूनों के मकड़जाल में उलझकर
उन नर पिशाचों को लटकाते रहेंगे फाँसी पर
पूरे सम्मान के साथ,
और मोमबत्तियाँ नहीं हो पाएँगी आहूत
उनकी जलती लाशों पर
शहर के किसी बड़े चौराहे पर
कठुआ होता रहेगा
कठुआ होता रहेगा
जब तक नग्नता, अश्लीलता
बने रहेंगे साधन मनोरंजन के
स्त्रियाँ अपनी सुन्दरता से पहचानी जाती रहेंगीं
न कि अपनी प्रतिभा और हुनर से
जब तक बाजार वस्तु की तरह भुनाएगा उन्हें
जब तक केवल श्रृंगार ही उनका अपरिहार्य अंग बना रहेगा
कठुआ होता रहेगा
कठुआ होता रहेगा
कि जब तक स्त्री लेती रहेगी आश्रय
पुरुष की चौड़ी छाती के पीछे
जब तक लोक लज्जा की सारी जिम्मेदारी
ढोती रहेगी कन्धों पे अपने वह
जब तक बनी रहेगी अबला,असहाय,लाचार,बेसहारा
कठुआ होता रहेगा
कठुआ होता रहेगा
जब तक वह प्रतिकार नहीं करेगी
इस पिशाची मानसिकता पे स्वयं उठ
प्रहार नहीं करेगी
समाज प्रदत्त जंजीरों पर वार नहीं करेगी
सदियों से अट्टाहस करते दम्भी परुषत्व का
अपनी प्रतिभा के बूते
आगे बढ़ संहार नहीं करेगी
कठुआ होता रहेगा.....होता रहेगा....होता रहेगा
हे ईश्वर! कठुआ अब कभी न हो....
आशिष मिश्र