कविता - आमीन....... - प्रकर्ष मालवीय
आमीन.......
प्रकर्ष मालवीय की कविताएँ
रोहिंग्या रोहिंग्या : कौन हो तुम?
रोहिंग्या रोहिंग्या
कौन हो तुम?
इंसान हो?
लगता तो नहीं!
दो पैर, दो हाथ के धड़ के ऊपर,
सर रख देने से कोई इंसान नहीं बन जाता!
इंसान होने के लिए आवश्यक है
उस जगह के,
जहाँ तुम इंसान होने का हक़ माँग रहे हो,
बहुसंख्यक समुदाय से होना,
जितना बड़ा समुदाय,
उतने सभ्य लोग,
उच्च कुल से होना,
जितना ऊँचा कुल,
उतना अच्छा इंसान.
पर तुम तो.......
रोहिंग्या रोहिंग्या
कौन हो तुम?
क्या कहा रिफ़्यूजी हो?
रिफ़्यूजी होना,
इंसान होने के सबसे अंतिम लक्षण हैं.
रिफ़्यूजी होना,
दुनिया पे बोझ होना है.
रिफ़्यूजी होना,
मुल्क की सुरक्षा में ख़तरा होना है.
रिफ़्यूजी होना,
इस ख़ूबसूरत दुनिया की,
सुंदरता में बट्टा लगाना है.
ना तुम बर्मा के हो,
ना बांग्लादेश के,
ना भूटान या नेपाल के,
और भारत के होना तो भूल ही जाओ.
अब तुम क्या करोगे,
कहाँ जाओगे,
कहाँ जा कर ढूँढोगे,
अपने पुरातात्विक प्रमाण,
जाओ डूब मरो
बंगाल की खाड़ी में,
इसके पहले कि,
सारे देशों की चुस्त दुरुस्त कर्तव्यनिष्ट सेनाएँ,
उठा के फेंक दें तुम्हें,
बंगाल की खाड़ी में,
लेकिन क्या बंगाल की खाड़ी में इतना पानी है?
कि डूबो दे तुम्हें?
जाओ गला घोंट दो अपनी संतानों का,
और डूब मरो,
ताकि मानवीय सभ्यता बची रहे,
अपने सफलतम रूप में.
जाओ कि तुम्हारी किसी को ज़रूरत नहीं है,
जाओ कि तुम्हारे पास इस दुनिया को देने को कुछ नहीं है,
जाओ कि तुम्हारे श्रम से कुछ भी निर्मित नहीं हो सकता,
जाओ कि हमारे देश में भूखे नंगों की,
वैसे भी कोई कमी नहीं है.
रोहिंग्या रोहिंग्या
आज वो भी तुम्हें देख कर डरे हुए हैं,
जो ख़ुद,
किसी समय,
कहीं पर,
रिफ़्यूजी थे
प्रकर्ष मालवीय