आपनी बात - यात्रा के दो वर्ष - गोपाल रंजन , प्रधान संपादक

आपनी बात - यात्रा के दो वर्ष - गोपाल रंजन , प्रधान संपादक 


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सन् २०१७ में गाँधी जयन्ती के अवसर पर सृजन सरोकार का पहला अंक प्रकाशित हुआ था। आज ठीक दो साल बाद बापू की १५०वीं जयंती के अवसर पर यह बताते हुए हमें गर्व का अनुभव हो रहा है कि इस छोटी सी अवधि में हमने बड़ा मुक़ाम हासिल करने की कोशिश की है। पूरे हिन्दी जगत में 'सृजन सरोकार' को सम्मान की दृष्टि से देखा जा रहा है। इस सम्मान का श्रेय जहाँ हमारे विद्वान् लेखकों को जाता है, वहीं सुधी पाठकों और विज्ञापनदाताओं को भी इसके लिए आभार व्यक्त किया जाना चाहिए। क्योंकि उनके प्यार और सहयोग के बिना हमें यह उपलब्धि हासिल नहीं हो पाती।


 


      १५० वर्ष के बापू' विशेषांक के लिए प्रसिद्ध कवि, आलोचक प्रोफेसर राजेन्द्र कुमार को पूरा श्रेय देते हुए उनका आभार व्यक्त करना चाहूँगा। उन्होंने अस्वस्थता के बावजूद इस अंक को बेहतर बनाने के लिए अत्यधिक प्रयास किए। अपनी अस्वस्थता के दौरान भी उनके दिमाग में यह विशेषांक ही 'हावी' था। वे गहन चिकित्सा कक्ष में भी रहे लेकिन बीमारी पर विजय प्राप्त करने के बाद बाहर निकलते ही पूरे मनयोग से इस अंक को पूरा करने में जुट गए। राजेन्द्र जी का ही प्रभाव था कि विशिष्ट गाँधीवादी विद्वानों ने अपना मूल्यवान समय देकर वक्त पर लेख प्रेषित किए। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शोध छात्र और हमारे सम्पादन सहयोगी अवनीश यादव ने राजेन्द्र जी के इस कार्य में एक योग्य शिष्य की तरह पूरा योगदान दिया। आज इस पत्रिका का जो कलेवर सामने आया है उसके लिए प्रकाशक उमा शर्मा रंजन और कला निदेशक नीतीश कुमार के श्रम को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उनकी दिन-रात की मेहनत से ही यह पत्रिका समय से सामने आ पाई है। भाई अरविंद कुमार सिंह ने कंधे-से-कंधा मिलाकर हमारा साथ दिया है इसके लिए हम उनके आभारी हैं। प्रसिद्ध कलाकार प्रोफेसर अजय जैतली ने अपनी व्यस्तता के बावजूद सुन्दर आवरण की रचना की, हम उनके भी आभारी हैं। इस यात्रा में भाई कुंवर रवीन्द्र और अवधेश राय के योगदान को भी भुलाया नहीं जा सकता।


      '१५० वर्ष के बापू' विशेषांक को हम बृहद् रूप देना चाहते थे परन्तु कुछ मजबूरियों के कारण हमें रुकना पड़ा। कई विद्वानों के लेखों को इसमें स्थान नहीं मिल पाया है। हमारी कोशिश रहेगी कि जनवरी अंक में उन्हें प्रकाशित कर सकें।