लघुकथा - "जन्मदाता" -,सविता मिश्रा 'अक्षजा
"जन्मदाता"
"आज तो आपने माँ दुर्गा और गणेशजी की मूर्तियाँ बेचकर काफी रुपया इकट्ठा कर लिया |"
"हाँ इमली, कर तो लिया |"
"अरे, तो फिर उदासी क्यों हो ? "
"देख रहा हूँ कि आज लोग मूर्ति खरीदते समय वह भाव नहीं रखते, जो पहले रक्खा करते थे |"
"तुम्हें कैसे पता चला कि लोग अब वैसा भाव नहीं रखते ?"
उसने आँख दिखाते हुए कहा, "तुम्हीं बताओ, तुम्हें कैसे पता चलता है कि किसने तुम्हारे बच्चों को किस नजर से देखा ? रोज ही शिकायत करती हो कि वह हमारे बबुआ को बड़ी जलन भाव से देख रही थी या वह हमारी बिटिया को ललचाई हुई गिद्ध नजरों से घूर रहा था ?"
"ये भी कोई बात हुई ! मैं माँ हूँ उनकी | अपने बच्चों पर गिरती हर नजर को भलीभाती पढ़ लेती हूँ मैं |"
"तो फिर ये मूर्तियाँ भी तो मेरे लिए मेरे संतानों जैसी ही हैं न !" वह उसकी आँखों में नजरें गड़ाकर बोला |
इमली उसकी झील-सी निगाहों में झाँकती ही रह गयी |
सविता मिश्रा 'अक्षजा'
देवेन्द्र नाथ मिश्रा (पुलिस निरीक्षक )
फ़्लैट नंबर -३०२, हिल हॉउस
खंदारी अपार्टमेंट, खंदारी
आगरा २८२००२
मो.09411418621