लघुकथा - हैप्पीनेस ऑफ डेथ - सत्या शर्मा कीर्ति'
हैप्पीनेस ऑफ डेथ
मॉर्निंग वॉक करते हुए अचानक मेरी नजर सड़क किनारे गिरी एक डायरी पर पड़ी और फिर सहज जिज्ञासा बस मैं उसे उठा ली।
सुंदर अक्षरों को देख मानव स्वभाव बस पन्ने पलटने लगी।
१६ जनवरी २०१८
___ "मरना किसे पसन्द है किंतु जीवन की भी एक सीमा होती है। वो कब तक साथ देगी या बीच राह में छोड़ देगी ,यह कौन जान पाया है भला। पर! हाँ अब थकने लगी हूँ फिर भी डायरी में चंद लाइने न लिखू तो नींद भी नहीं आती।"
"यूँ ही एक अर्थहीन सा जीवन और अर्थहीन मौत। फिर जन्म ही क्यों लेता है मनुष्य ?
अब कैंसर का दर्द नहीं झेल पाती हूँ। आँखों में धुंधलापन छाता जा रहा है। अच्छा ही है दुनिया की बदसूरती देखने से अच्छा है आँखे ना ही रहे।
१८ फरवरी २०१८
"आज बहुत खुश हूँ अखबार में देखा एक बहुत ही खूबसूरत नायिका भी कैंसर के चौथे स्टेज से गुजर रही है, चलो, कहीं तो समानता है। सुंदरता और शोहरत में न सही पीड़ा तो एक ही है।"
डायरी जैसे मेरे हाथों से छूटते-छूटते रही ।
३० मार्च २०१८
"दर्द झेल नहीं पाती हूँ, पर जब सोचती हूँ महंगे अस्पताल और खूबसूरती से भरी उस नायिका को भी ऐसे दर्द झेलने पड़ते होंगे तो जाने कैसे मेरे सारे दर्द गायब हो जाते हैं । साथ ही वो भी सारे के सारे दर्द जो बचपन से झेले हैं।"
१२ अप्रैल २०१८
"जानती हूँ फिर हार जाऊँगी, उसके पास को अथाह दौलत है वह हो ठीक हो जाएगी,और मेरा यह खैराती अस्पताल तो जाने कब से एक बेड खाली होने का इंतजार कर रहा है। पर जाना तो सभी का निश्चित है।"
२६ अप्रैल २०१८
आंखों में गहरे तक जख्म उतर चुकी हैं।
शायद अब डायरी लिख नहीं पाऊंगी। कुछ पन्ने बचे ही रह जाएंगे।
पर खुशी है मैंने कई सारे पन्नो लिखे, खाली तो चंद पन्न ही रहेंगे। पर! जीवन के पन्नो...?
३ मई २०१८
काश की मेरे भी पर्स में वो गहराई होती और मैं भी पूरी डायरी लिख पाती।
अब शब्द ढंग से दिखते भी नहीं
अब शब्द ढंग से दिखते भी नहींपर! खुश हूँ कहीं तो बराबरी कर ली मैंने, अब दर्द नहीं डरता मुझे।
गहरे वेदना से भर कर मैं डायरी पलटती रही, अगले कुछ पन्नो पर कुछ आड़ी-तिरछी सी रेखा और फिर खाली सफेद पन्नो.....।
एक अनजानी स्त्री की डायरी लिए वहीं स्तब्ध सी सोचती रह गयी मैं कि हमारे द्वारा की गई तुलना किसी के अंदर इतनी हीन भावना भी भर सकती है कि वो मौत की पीड़ा की बराबरी पर खुश हो?
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