लघुकथा-  दूसरा कन्धा  - सविता मिश्रा 'अक्षजा'

लघुकथा-  दूसरा कन्धा  - सविता मिश्रा 'अक्षजा'


 


दूसरा कन्धा

"पहले के लोग दस-दस सदस्यों का परिवार कैसे पाल लेते थे| अपनी जिन्दगी तो मालगाड़ी से भी कम स्पीड पर घिसट रही है जैसे|" महंगाई का दंश साफ़ झलक रहा था पति के चेहरे पर|
"पहले सुरसा मुख धारण किए ये महंगाई कहां थी जी| अब तो दो औलाद ही ढंग से पालपोस लें यही बहुत है|" महंगाई पर लानत भेजती हुई पत्नी बोली|
"सही कह रही हो तुम|"
"महंगाई की मार से घर के बजट पर रोज एक न एक घाव उभर आता है| कल ही बेटी सौ रूपये उड़ा आई तो बजट चटककर उसके गाल पर बैठ गया|" पत्नी की आवाज में पछतावा साफ़ झलक रहा था|
"मारा मत करो| सिखाओ कि 'कैसे चादर जितनी पैर' ही फैलायें|" समझाते हुए पति ने कहा|
"क्या करूँ जी! तिनका-तिनका जोड़ती हूँ, पर बचा कुछ नहीं पाती हूँ| तनख्वाह रसोई और बच्चों की स्कूल और ट्यूशन फ़ीस में ही दम तोड़ने लगती है| कोई काम वाली नहीं रखी फिर भी महीने के अंत समय में ठनठन गोपाल रहता है|" कहकर भारी कदमों से चल दी रसोई की ओर|
नौकरी छुड़वा देना का अपराध बोध तो था, फिर भी आस भरी निगाहों से पत्नी को निहारते हुए बोला-
"सुनती हो, एक अकेला कन्धा गृहस्थी का बोझ नहीं उठा पा रहा| दूसरा कन्धा .. ? शायद आसानी हो फिर|"
सुनकर पत्नी का चेहरा सूरजमुखी-सा खिल गया| पत्नी के हामी भरते ही पति के आँखों में घर का बजट मेट्रो-की-सी स्पीड से दौड़ने लगा|
सविता मिश्रा 'अक्षजा'
2 March 2015


                                                          सविता मिश्रा 'अक्षजा', देवेन्द्र नाथ मिश्रा (पुलिस निरीक्षक )                                                                 फ़्लैट नंबर -३०२, हिल हॉउस,खंदारी अपार्टमेंट, खंदारी,


                                                           आगरा २८२००२, फोन नं0-09411418621
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