लघुकथा - असर- अनिता रश्मि
असर
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एक दिग्गज समाजसेवी भाषण दे रहे थे। अवसर था, राष्ट्रीय महिला सम्मेलन का।
स्त्री भोग्या नहीं, पूज्य है। वह देवी है। उन अबलाओं को, जिन्हें हम कोठे पर बिठाकर खरीदते हैं, अब सम्मान की जिंदगी देनी है। हमें उन्हें इस नारकीय स्थिति से निकालना है।
वह थोड़ा सुस्ताते हुए चारों ओर देखने लगे। लोग बहुत ध्यान से सुन रहे थे। उनका सीना चौड़ा हो गया।
आगे कहा- आइए, हाथ उठाकर हमारे साथ संकल्प लीजिए... किसी भी स्त्री के साथ अन्याय न करेंगे, न होने देंगे। आज चारों ओर हाहाकार मचा है। ऐसे समय में हमारा कर्तव्य है, हम नारियों के लिए कुछ करें। शुरूआत कोठे से ही...।
वे बड़े प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। उनकी बातों को बहुत गौर से सुना जाता था। अमल भी किया जाता था।
यहाँ महिलाओं की भीड़ में पुरूष भी शामिल थे। सबने हाँ में हाँ मिलाई।
वह युवक भी सम्मेलन में गया था। उनके भाषण से प्रभावित हो उसने निर्णय ले लिया - अब कभी भी वह नीला बाई के कोठे पर नहीं जाएगा। जाना तो दूर, उसकी ओर आँख उठाकर भी नहीं देखेगा।
उसका दफ्तर थोड़ी दूर पर था। किधर से भी जाए, रास्ते में नीला बाई का कोठा पड़ता ही था। दूसरे दिन दफ्तर से लौटते हुए बाई का कोठा नजर आया।
उसका मन ललचाया।वह ठिठका। उसे अपने दृढ़ संकल्प की याद आई। उसने आगे कदम बढ़ाया।
लेकिन यह क्या? जाड़े के धुंधलके में वही निहायत शरीफ, प्रतिष्ठित व्यक्ति अपने भारी भरकम शरीर को छिपाते हुए सीढ़ियों से उतर रहे थे। जिसकी शराफत की लोग कसमें खाते थे, उसे वहाँ देखकर कौंधा- स्त्री पूज्य है... अन्याय न करना है, न होने देना है।
उसका खून खौल उठा। तोंदुल शरीफजादे का काॅलर पकड़ उसने जोरदार पटकनी दी। घूंसे-लात से उसकी पूजा की। उसके चेहरे पर थूक कर बड़बड़ाते हुए चल दिया,
- साले सफेदपोश ! ये चले हैं समाज को सुधारने।
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