कविता - वह स्त्री---- यामिनी नयन गुप्ता
वह स्त्री----
वह स्त्रीवह स्त्री...
पहाड़ों में बहती नदी सी
बर्फ की खामोशी ओढ़ लेती है
सर्द हो जाती है
स्वयं पर बर्फ की चादर लपेटे
भीतर कल-कल बहती जाती है
इस बर्फ के नीचे कितनी
भावनाएं-आकांक्षाएं दबी हैं।
उफ्फफ!!
टूटकर चाहे जाने की लालसा
क्या किसी ने सोचा है
कौन तोड़ेगा इस वर्फ की चादर को
उसने जकड़ लिया हाथ को कसकर
वह था हमदर्द..बोला
बैठो यहां तसल्ली से ....
अवश सी वह स्त्री बैठ गई
एक अनतर्द्वद मथ रहा था
उसे मन ही मन में
सुख दुख का साथी था एक और
दूसरी तरफ आदर्शवादिता की सीमा,
अंधेरे जीवन के दायरों से निकल
कैसे वह सपनों की दुनिया में खो जाए;
पंछियों और तितलियों के पीछे
भागने की ललक तो थी,
पर हौसला कहाँ था।
फिर क्यों फूलों और तितलियों का सपना
वही बादलों और पहाड़ों की अटखेलियां
वही झरनों और जंगली हवाओं का शोर
जो शरीर को हल्का कर
सिखाता है आसमाँ की उडान
कैसा आल्हादक वह स्वप्न
ना गिरने का डर ना भविष्य की चिंता,
सपने में भी वह अकेली नहीं थी
कोई था उसके साथ
मजबूती से थामे उसका हाथ
चेहरा पढ़ना चाहा पर, वह तो
किसी और का चेहरा था
"तुम्हें दुनिया की सारी मुसीबतो
सारे रंजो गम से मैं दूर रखूगा
तुम्हारा अपना हूं मैं आ ही नहीं कल भी
हर पल रहूंगा तुम्हारे साथ
" स्त्री ने कसकर पकड़ लिया हाथ
सपने से वह जागी तो खुद को
बहुत हल्का महसूस किया
बदन के जोड़ जोड़ से जैसे
निकल रही थी धुंघरू की रुनझुन
हवाओं की ठंडक में फैली हुई थी
फूलों की मदमस्त गुनगुन
नागफनी के जो कांटे थे उसके भीतर
गलाव की चटखती कलियों से बिखर गए.
कसे जूड़े से खोल उसके बाल हवा मे
वर्जना के टटे तारों की तरह छितरा गए:
एक सम्मोहन जादू सा---
उसकी रग-रग में ले रहा था हिलोरें।
वस इतना ही काफी है
जीवन की कटुताएं झेलने के लिए
अपनी सारी कुंठा शिकायतों को
जीवन रस और गंध से भरा है..एक एहसास
कर दिया समर्पित प्रेम और विश्वास
दीवार पर लगे आईने में देखा चेहरा
कहीं कोई निशान बाकी नहीं
बर्फीली पहाडी नदी अब
अंदर से कलकल बह रही थी
सम्पर्क : यामिनी 'नयन' गुप्ता, सिविल लाइंस रामपुर-२४४९०१, उत्तर प्रदेश मो.नं. : ९२१९६९८१२०