कविता - वह बीड़ी पीता है - गौरव भारती,
.वह बीड़ी पीता है
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मैनपुरी के किसी गाँव के किसी गली का
वह रिक्शा चालक
बीड़ी पीता है
नब्बे पैसे की एक बीड़ी
मेरे सिगरेट से लगभग सोलह गुनी सस्ती है
पैडल पर पैर जमाते हुए
वह बीड़ी के फायदे बताता है और
बड़े शहर में छोटी-छोटी बातें करता है
जिसे मैं उसके वक्तव्य की तरह नोट करता हूँ
बड़े-बड़े पीलरों के ऊपर
जहाँ मेट्रो हवा को धकियाते हुए सांय से गुज़र जाती है
उन्हीं पीलरों के नीचे से
रिक्शा का हैंडल मोड़ते हुए
वह मुझे वहाँ तक पहुंचाता है
जहाँ वक़्त लेकर ही पहुँचा जा सकता है
सिगरेट की कशें लेते हुए
मुझे उसका ख्याल आता है
और मैं सोचता हूँ-
इंसानों को बीड़ी की तरह सस्ता, सहज और उपलब्ध होना चाहिए .
गौरव भारती, शोधार्थी, भारतीय भाषा केंद्र , जे.एन.यू., कमरा संख्या-108,
झेलम छात्रावास , जे.एन.यू., पिन-110067, मो0- 9015326408