कविता - "तुम बहुत खूबसूरत हो" नहीं कहूंगा मैं  - सुशान्त मिश्र

कविता - "तुम बहुत खूबसूरत हो" नहीं कहूंगा मैं  - सुशान्त मिश्र


 


"तुम बहुत खूबसूरत हो" नहीं कहूंगा मैं 


 


हां ये कहूंगा,


कि तुम खूबसूरती से परे एक आदर्श लड़की होने का सुबूत हो
उसकी बनायी दुनिया के  कोर्स में,
तुम हो वो ज़रूरी पाठ,
जिसे पढ़े बगैर नहीं पूरा होता कोई सबक़


तुम्हारे माथे की लकीरें किसी आयत में खींची गयी विकर्ण हैं,
दोनों भौहों के बीच की जगह है एक बिंदु,
जहाँ पर लगी हुई महरून बिंदी चाँद की दुश्मन है


तुम्हारी आंखों की तर्ज़ पर,
बनायीं गयी हैं बिल्लियों की आंखें
तुम्हारें नाज़ुक कान
हैं खरगोश की जान उसके कान में होने का मतलब


तुम इतनी नाज़ुक हो,सही है!
पर नहीं होना चाहिए था तुम्हें इतना नाज़ुक
कि किसी फूल की पंखुरी छू जाने भर से पड़ जाये निशान
और पागल दुनिया पूछने लगे,
"कल तुम्हे किसने छुआ?"


वक़्त की बिसात पर रखे गये सारे खूबसूरती मापने के पैमाने
तुम्हें देखकर ख़त्म कर दिए गये हैं
कि अब उन पैमानों की जगह,
रखी हुई है तुम्हारी तस्वीर..


                                                                                                              -सुशान्त मिश्र