कविता - टूरा - कृष्ण चन्द्र महादेविया
टूरा
विकसित है गांव
विकसित है खेत
विकसित है पशु
विकसित है स्कूल
विकसित है टूरा
और उसका परिवार।
पक्का मकान है टूरे का
पशुशाला भी पक्की है
बेखौफ बनाए है उसने
सरकारी भूमि पर
बब्बर शेर है टूरा
मायने नहीं रखते कोई
नियम-कानून उसके लिए।
करामाती शराब बनाता है टूरा
खूबसूरत पत्नी और जवान बेटी
जानती है ग्राहक पटाने का मंत्र
बीज मंत्र जो मिला है बाबा से
तभी तो दिन के कई-कई फेरे
लगाता है पम्मा झीर और साथी
पूरा डायरेक्टर है टूरा
विस्तृत बाजार का।
टूरे के ग्राहक भोले हैं
झूमते-गनगुनाते हंसते हैं
दीखते हैं सब के सब मासूम
मुस्कराते हुए केवल
टाल जाती है टूरे की बेटी और पत्नी
हल्की छेड़-छाड़ और रोमानी बातें1
राजधानी से गांव तक
बस बाजार ही बाजार है
बिक रहे है खेत
बिक रहे है पेड़
बिक रहे है नदी-नाले
बिक रहे है लोग
खुश है बहुत बाजार पूरा
शिमला का दरवार और टूरा
सम्पर्क : डाकघर महादेव, सुन्दरनगर, जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश पिन कोड-175018 मो.नं. : ८६७९१५६४५५ - कृष्ण चन्द्र महादेविया