कविता - तन्हाई के मौसम में उदास मत होना - मोहन कुमार झा,
तन्हाई के मौसम में उदास मत होना
मेरे दोस्त ! तन्हाई के मौसम में कभी उदास मत होना
खराब लोगों और गलत बातों को सोचकर
अपना मन छोटा मत करना
जन्दिगी किसी अघोषित जंग जैसी हो जाए फिर भी
नफरत की नजर से किसी को मत देखना
मेरे दोस्त ! तन्हाई के मौसम में मेरी तरह तुम भी
अपने गांव को याद करना
घरवालों की तस्वीरे निहारना
पढना प्रेमचंद की कहानियां
गुनगुनाना कोई कविता
लिखना प्रेमिका को खत और फाड़कर फेंक देना
मेरे दोस्त ! तन्हाई का मौसम कितना भी लम्बा क्यों न हो
मेरी तरह तुम भी अपनी तन्हाई किसी से मत बांटना और खुश
रहना।
मेरे दोस्त ! तन्हाई के मौसम में खूब सोचना
हवा, पानी, धरती और किताबों के बारे में सोचना
अपने दोस्तों के बारे में सोचों न सोचों
अपने दुश्मनों के बारे में जरुर सोचना
मेरे दोस्त ! तन्हाई के मौसम में तुम अपने लिए चाहे मत सोचना
मगर देश के लिए जरुर सोचना।
मेरे दोस्त! तन्हाई के मौसम में चुप रहना
कम बोलना और अधिक सुनना
खुद को चाहे भुला देना मगर
आदमी को पहचानना सीखना
तन्हाई के मौसम में सीखना आसान होता है
मेरे दोस्त ! तन्हाई के मौसम में बेकार मत बैठे रहना
यात्राएं करना
शहर और आदमी के ऊब के अंतर को महसूस करना
बरगद या पीपल के किसी विशाल वृक्ष के नीचे बैठना
पहाड़ को नीहारना
खेतों में धूमना
बारिश में भींगना
देर तक मत सोना
कुत्ते को डंडा मत मारना
नजर नीचे मत करना
गर्दन सीधी रखना
घबराना बिल्कुल मत
तन्हाई के मौसम में आदमी कुछ भी खोता नहीं है
मेरे दोस्त ! तन्हाई का मौसम शोक मनाने का नहीं
स्वयं को पुनर्जीवित करने का मौसम होता है!
सम्पर्क : मोहन कुमार झा, अररिया, बिहार