कविता - सिर्फ तुम ....ओ मेरे चाँद - विशाखा मुलमुले
सिर्फ तुम ....ओ मेरे चाँद
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वो होगा चाँद प्लूटो का
जो बहुत निकट हो अपनी प्रेयसी प्लूटो की धरा के
और ढाल बनकर भी खड़ा हो सशक्त प्रेमी बन
धरा और आग के गोले के मध्य
पर अधिक निकटता से भी नज़र धुंधला जाती है
या वो होगा ब्रहस्पति में उग आए कई चाँद के मध्य
एक और गुमनुमा चाँद बनके ,
पर अधिकता में दर्शाया प्यार भी महत्व खो देता है
या वो हो सकता है ,
मंगल के चाँद जैसा
जो हो भय का देवता भी और अत्यधिक आकर्षण में
अपनी मंगल धरा के समीप भयहीन हो
खिंचा चला जा रहा हो मिलकर , टूटकर ,विलुप्त होने
पर प्रेम कहानी का अंत मुझे पसंद नही !
मुझे तो तुम ,
ओ ! मेरे चाँद तुम ही पसंद हो
जो एकाकी मेरे आकाश में विचरण करता हो
मेरे समुद्र से मन को
स्थिर कभी विचलित करता हो
जिसकी कलात्मक सोलह कलाएं
सोलहवे साल से मेरे साथ है ..
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विशाखा मुलमुले, छत्तीसगढ़ , 9511908855