कविता - प्रणय के रक्तिम पलाश - यामिनी नयन गुप्ता  

कविता - प्रणय के रक्तिम पलाश - यामिनी नयन गुप्ता  


प्रणय के रक्तिम पलाश


 


फिर वही फुर्सत के पल


फिर वही इंतजार,


खिलना चाहते हैं हरसिंगार


अब मैंने जाना---क्यों तुम्हारी


हर आहट पर मन हो जाता है सप्तरंग;


मैं लौट जाना चाहती हूं


अपनी पुरानी दुनिया में


देह से परे---


प्रकृति की उस दुनिया में


फूल हैं,गंध है, फुहार है, रंग हैं,


बार-बार तुम्हारा आकर कह देना


 


यूं ही छुट्ठ मन की बात


बेकाबू जज़्बात,


मेरे शब्दों में जो खुशबू है


तुम्हारी अतृप्त वाहों की गंध है,


इन चटकीले रंगों में नेह के बंध हैं


इंद्रधनुषीय रंग में रंगे हुए


मेरी तन्मयता के गहरे पल हैं,


बदल सा गया हर मंजर


यह भी रहा ना याद


बह गया है वक्त---


लेकर मेरे हिस्से के पलाश


हां--- मेरे रक्तिम पलाश।


 


                                                                   सम्पर्क : यामिनी 'नयन' गुप्ता, सिविल लाइंस रामपुर-२४४९०१, उत्तर प्रदेश मो.नं. : ९२१९६९८१२०