कविता - हम और मैं - सुशांत मिश्र
हम और मैं
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जब दुनिया रची जा रही थी
सब कुछ पूर्व से ही सुनिश्चित था शायद
नाली के कीड़े से लेकर
बड़े-बड़े जंगली हांथियों तक
ज़हरीले साँप बिच्छुओं से लेकर
प्रकृति के दोस्त केंचुए तक
सारे पशु-पक्षी और हम...
हम मतलब दुनिया की सर्वश्रेष्ठ प्रजाति
हम मतलब ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना
हम मतलब सद्गुणों से भरे-पूरे जीव
हम जो,
पूरी दुनिया के जीवों की अच्छाई सीख गये
हम जो,
देवताओं को भी सम्मोहित कर लेते थे
हम जो,
न्यूटन के क्रिया-प्रतिक्रिया नियम की तरह
प्रकृति को प्यार देते थे
प्रकृति हमारी जरूरते पूरी किया करती थी
जैसे अब भी करती है...
हम कुछ इस तरह विकासशील होने लगे
हमने सीखीं
अच्छाइयों के साथ मतलबी बुराइयों की हर चाल
जिसने उखाड़ कर फेंक दी
हमारी बरसों से संजोयी हुई प्यार की पौध
हमने खेला वो खेल,
जहाँ "हम" नहीं "मैं" विजयी होता है
हम सब "हम" के दौर से भागते-दौड़ते
आकर खड़े हो गए अकेले "मैं" पर
सुशांत मिश्र ,ग्राम- नगरा (दरी),पोस्ट-संडिलवा ,ज़िला- लखीमपुर खीरी- २६२७२७