कविता - गुलमोहर शाखों में - यामिनी 'नयन' गुप्ता,
गुलमोहर शाखों में
दहक उठे लो फिर से
गुलमोहर शाखों में....
पतझड़ फूल पत्ते सब छीन
ठूंठ वीरान गुलमोहर का क्रंदन
वहार आने की राह तकता
पेड़ चुपचाप सब देखता है
दुख दवाए कांखों में .....
प्रसव पीड़ा से उद्भूत रक्तवर्णी
नव पल्लवों का सौंदर्य, घिर
आया है नैनों में, प्रेम में मगन
हर डाली एक दूजे के वाहें
डाली ..खिले पुष्प लाखों में ..1
लिखना बहुत शेष था पर
सार्थक संवाद खो गए
अनुबूझी तृष्णा लेकर
मरीचिका की किरचें
अब चुभती हैं आंखों में..।
अंगारों के आखर पढ़ती
कहती सहमी कल-कल
रिसता जीवन पल-पल
बदल गई लहर लहर
प्रज्ज्वलित सलाखों में..।
मन पराया हो रहा है
तन उनींदा सो रहा है
इस नशीली चंद्रवदना
'यामिनी' में, सुप्त चाह को
उदीप्त कर राखों में।
रे हठी!! ना झिझक तू भी
आज मन की बात कह ले
मधुवनों ने शराब पी ली
सुरभि वेणी हुई ढीली
पिया मिलन के पुष्प खिलेंगे
अब के बरस तो फागों में।
दहक उठे लो फिर से
गुलमोहर शाखों में..।
सम्पर्क : यामिनी 'नयन' गुप्ता, सिविल लाइंस रामपुर-२४४९०१, उत्तर प्रदेश मो.नं. : ९२१९६९८१२०