कविता -  गौरव वाजपेयी "स्वप्निल"

कविता -  गौरव वाजपेयी "स्वप्निल"


 


उम्मीदों की आशाओं की
गढ़ी हुई परिभाषाओं की
कब तक बात करें
यूं ही जियें मरें


रोज सुबह नव नव चिंताएं
नयी प्रीति कुछ नयी घृणायें
जीवन तट पर आयें-जायें
ये बेहाल करें


जेब में है बस ख़ाली बटुआ
सनकी बड़की बेबस छुटुआ
लक्ष्मी माँ की धुंधली फुटुआ
कैसे श्रृंगार करें


आगे के दिन काले-काले
पाँव थके उभरे हैं छाले
किस्मत पे मोटे से ताले
कैसे राह चलें


जिम्मेदारी इतनी भारी
आगे पीछे दुनिया सारी
हुई आज है अत्याचारी
कैसे बोझ सहें


संसद में हैं अपने नेता
नेता कम ज्यादा अभिनेता
भारत अपना विश्व-विजेता
क्यों परवाह करें


अपनी किस्मत राम भरोसे
खाओ टिक्की और समोसे
किससे बोलें किसको कोसें
खाएं और चलें............


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                                      सम्पर्क -गौरव वाजपेयी "स्वप्निल",C/O श्री संजीव गौतम,521, गली नम्बर 8
                                      साकेत, मुज़फ्फरनगर (उत्तर प्रदेश)पिन कोड-251001     


                                       मोबाइल नम्बर-8439026183, 7983636782