कविता- और आना - संजय वर्मा "दॄष्टि "
और आना
विदा होते ही आँखों की
कोर में आँसू आ ठहरते
और आना/जल्द आना
कहते ही ढुलक जाते आँसू
इसीको तो रिश्ता कहते
जो आँखों और आंसुओ के
बीच मन का होता है
मन तो कहता और रहो
मगर रिश्ता ले जाता
अपने नए रिश्ते की और
जैसे चाँद का बादलों से होता
रिश्ता ईद/पूनम का जैसा
दिखता नहीं मन हो जाता बेचैन
हर वक्त निहारती आँखे
जैसे बेटी के विदा होते ही
सजल हो उठती आँखे
कोर में आँसू आ ठहरते
फिर
ढुलकने लगते आँखों में आंसू
विदा होने के पल चेहरे छुपते
बादल में चाँद की तरह
जब कहते अपने -और आना
दूरियों का बिछोह संग रखता है आँसू
शायद यही तो अपनत्व का है जादू
जो एक पल में आँसू
छलकाने की क्षमता रखता
जब अपने कहते -और आना
संजय वर्मा "दॄष्टि " 125 शहीद भगत सिंग मार्ग मनावर जिला -धार ( म प्र ) 454446
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