कविता  - अपवादित इंसान - सुशांत मिश्र 

  


कविता  - अपवादित इंसान - सुशांत मिश्र 


 


अपवादित इंसान


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जब उसके सूनेपन को 
कोई समझ बैठता है उसका सर्वश्रेष्ठ गुण
जब उसका मौन 
कोई समझ बैठता है सर्वश्रेष्ठ संगीत
जब उसका मुस्कुराना
कोई समझ बैठता है सर्वश्रेष्ठ कोमल अभिव्यक्ति
तब शुरुआत होती है एक युद्ध की
युद्ध का उद्देश्य होता है उसे मोह से हरा देना


जब वह जा रहा था अपनी अबूझी मंज़िल की ओर
उसे लग गई अचानक एक ठेस
जिसने घायल कर दिया उसका पूरा वर्तमान
वो रोड़ा,
जो बन सकता था उसकी हार का कारण
वह उसे ठेस देने के तुरंत बाद बढ़ चला
अपनी नयी राह पर एक नयी मंज़िल की ओर
उसने रोड़े को दिखा दिया उसका भविष्य
अब,
दोनों बढ़ चले थे अलग-अलग रास्तों पर
अपने भविष्य की ओर


वह तब भी खुश था
जब अनंतकाल से संजोयी हुई उसकी खुशियां
कोई लूट ले गया था
वह तब भी खुश था
जब उसके स्वयं के बनाये हुये रिश्ते उसे धकेल रहे थे
संघर्ष की आग में


न ही वह मनाता है विजय का उत्सव
न ही किसी पराजय का शोक
उसे काल की गति से नहीं है भय
भय नहीं क्योंकि मोह नहीं
मोह नहीं तो इंसान कैसे?


मोह हार चुका था
अब वह अपनी पराजय का शोक नहीं
शत्रु की विजय का उत्सव मना रहा था


सच,
उसका इंसान होना अपवाद सिद्ध होता है
उसके स्वभाव से
                                सुशांत मिश्र ,ग्राम- नगरा (दरी),पोस्ट-संडिलवा ,ज़िला- लखीमपुर खीरी- २६२७२७