कविता  - आज भी बापू को देख सकते हो - श्वेतांक कुमार सिंह

कविता  - आज भी बापू को देख सकते हो - श्वेतांक कुमार सिंह

 

आज भी बापू को देख सकते हो

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मैंने देखा है बापू को

तुम भी उन्हें देख सकते हो।

 

जब कुछ अच्छा होता है,

कोई गले मिलता है,

सागर अपनी लाचार मछलियों को

मछुआरों से बचा पाता है,

हवाएं शीतल राग गाती हैं,

सीमाएं प्रेम करती हैं,

कोई पोंछता है

किसी लाचार के आंसू,

आत्मसम्मान सीख जाता है

कोई बंधुआ गुलाम,

सेवा में घुल जाता है

कोई मशहूर सा नाम,

जब प्रेम करने लगती हैं

दो खिसियानी बिल्लियां,

खेलने लगते हैं

साँप और नेवले एक साथ,

चरखे की आवाज 

जैसे लोरियां सुनाती हैं

तब समझना

तुमने बापू को देख लिया।

 

नोटों, इमारतों,

प्रतिमाओं, किताबों

राजनैतिक भाषणों,

कल्याणकारी योजनाओं

में भी उन्हें देख सकते हो।

 

पर उनसे मिलने के लिए

उन्हें छूने के लिए

महसूस करने के लिए

कुछ क्षण उनमें जीने के लिए

उनके चश्मे से 

प्यारी दुनिया देखने के लिए

तुम्हें जाना पड़ेगा

उस आदमी के पास

जिसे आज भी 

कोई नाम से नहीं बुलाता।

जो बापू को 

तस्वीरों में पहचान नहीं पाता

उनकी पुस्तकों का

उसे नाम नहीं आता

अपनी बेड़ियों के

चक्रव्यूह को काट नहीं पाता।

 

उन्हें रोशनी दिखाकर,

उनके साथ चरखा चलाकर,

बापू के साथ कुछ कदम

तेजी से भाग सकते हो, 

बापू को 

उनकी नजरों से देख सकते हो।

कोशिश करना

उस अंतिम व्यक्ति को

वहाँ ले जाने की

जहाँ 

वो अपने नाम से जाना जाए।

 



                                             श्वेतांक कुमार सिंह,(प्रदेश संयोजक एन वी एन यू फाउंडेशन),बलिया, उ.प्र.

                                              मोबाइल-- 8318983664


 


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