कहानी - इतना ही ठीक है

इतना ही ठीक है 



महेश कई दिनों से परेशान था। कोचिंग में अब उसके जैसे लड़कों के लिए कुछ नहीं रहा। इस क्षेत्र में बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ आ गई हैं, जिन्होंने बड़े-बड़े कोचिंग खोल लिए हैं। शहर भर में उनके बड़े-बड़े होर्डिंग लगे हैं। बच्चे और उनके अभिभावक इन होर्डिंग्स के प्रभाव में आ ही जाते हैं। हालांकि महेश के कोचिंग की स्थिति बिल्कुल खराब नहीं हुई थी, फिर भी इसमें इतने बच्चे इस समय नहीं थे, जिससे कि वह बहुत खुश होताकोचिंग के अन्य स्टाफ को उनका वेतन देने और अन्य खर्चों के बाद किसी तरह वह महीने में लगभग पैंतीस से चालीस हजार रूपये बचा लेता है। वह एक अच्छा स्टूडेन्ट था। उसके कई साथी आज बैंक, रेलवे या फिर सिविल सर्विस में हैं। किसी का भी वेतन पचास हजार रूपये से कम नहीं है। कुछ के वेतन तो लगभग पचहत्तर हजार रूपये हैंहालांकि उसे कई प्रतियोगिता परीक्षाओं के प्रारम्भिक एवं मुख्य परीक्षाओं में सफलता प्राप्त हुई थी, किन्तु मेरिट में नहीं आने के कारण उसका चयन नहीं हो पाया था। अब तो स्थिति यह है कि कई परीक्षाओं के लगभग शत प्रतिशत प्रश्न वह समय से बहत पहले हल कर देता है, लेकिन किसी भी परीक्षा के लिए उसकी आयु समाप्त हो चुकी है। उसने प्रश्न-पत्रों को तेजी से हल करने में जो महारत हासिल की है, उसे सीखकर उसके कई छात्रों ने विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं में सफलता प्राप्त कर ली है, लेकिन उसे अफसोस इस बात का है कि किस्मत ने उसका साथ नहीं दिया। जब ये बातें वह सोचता है तो और परेशान हो जाता है


उस दिन भी वह कोचिंग के अपने ऑफिस में बैठे-बैठे कुछ परेशान-सा लग रहा था। उसी समय उसका दोस्त देवेन्द्र वहाँ आया। उसने पूछा, 'क्यों परेशान हो भाई?'


कोई सरकारी नौकरी प्राप्त नहीं कर पाया। यही सोचकर परेशान हूँ, यार। - महेश ने जवाब दिया


तो क्या हुआ? अव तक सैंकड़ों छात्र तुम्हारे कारण सरकारी नौकरी प्राप्त करने में सफल हुए है, यह क्या कम है? – देवेन्द्र ने उसे समझाया।


ये सब तो ठीक है, भाई। लेकिन, सोचकर देखो आखिर ऐसा कब तक चलेगा। यदि आज मैं सरकारी नौकरी में होता, तो मेरी आर्थिक स्थिति तो अच्छी होती। इस कोचिंग से जितना कमाता हूँ, सब परिवार के भरण-पोषण में ही लग जाता हैअपने बच्चों के भविष्य के लिए भी कुछ बचाना मुश्किल होता जा रहा है। साथ में परेशानी यह है कि धीरे-धीरे बच्चों की संख्या घटते जा रही है। यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब मुझे यह कोचिंग ही बंद करना पड जाएगा। - महेश अभी भी परेशान था।


जीवन में उतार-चढ़ाव तो आते ही रहते हैं। इनका सामना करना चाहिए। जहाँ तक बच्चों की संख्या का सवाल है, तुम्हें भी बड़े-बड़े कोचिंग की तरह पढ़ाने के लिए नए-नए उपकरण जैसे प्रोजेक्टर आदि का उपयोग शुरू कर देना चाहिए। लेक्चर विधि से तुम बहुत दिनों तक बच्चों को बांधे नहीं रख सकते होतुम्हें भी बड़े-बड़े कोचिंग की तरह अपना विज्ञापन शहर के चौक-चौराहों पर और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लगवाना चाहिए। इसमें थोड़ा खर्च जरूर होगा, लेकिन जितना इन्वेस्ट करोगे, उसी के अनुकूल तुम्हारी आय में भी वृद्धि होगी, इसकी पूरी संभावना है। - देवेन्द्र ने समझाया।


महेश भी देवेन्द्र की बातों से सहमत होकर कहा, 'मैंने भी यही सोचा है।'


थोड़ी देर तक दोनों चुप रहेफिर देवेन्द्र ने पूछा, 'कभी-कभी यह बात मेरे समझ में नहीं आती है कि तुम किसी भी प्रतियोगिता परीक्षा के कठिन-से-कठिन प्रश्न-पत्र बड़ी आसानी से हल कर लेते हो, फिर तुम्हें किसी परीक्षा में सफलता क्यों नहीं मिली?'


'अब तो मैं अभ्यास करते-करते इनमें विशेषज्ञ हो चुका हूँ, पर उन दिनों यह बात नहीं था। मुझे घर से कोई आर्थिक सहायता मिलती नहीं थी। मैं अपना खर्च ट्युशन करके चलाता था। साथ में परीक्षाओं में भी बैठ जाता था। कई प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिखित टेस्टों में मैं सफल रहा, किन्तु मेरिट लिस्ट में में स्थान नहीं बना पाया। इसके कई कारण थे। मैं अपना अधिकतर समय ट्यूशन पढाने में लगाता था। प्रतियोगिता परीक्षाओं के प्रश्न-पत्रों को समय रहते हल करने के लिए पर्याप्त अभ्यास करने की आवश्यकता थी, किन्तु मेरे पास इसके लिए समय नहीं था। रही-सही कसर दूसरे के बदले परीक्षा में बैठने वाले लोग पूरा कर देते थे। शिक्षा माफिया लोग उन दिनों छात्रों से अच्छी खासी रकम लेकर उनके बदले दूसरे अनुभवी छात्रों को परीक्षा में बैठाते थे। ये अनुभवी छात्र अधिकतर प्रश्नों को हल करने में निपुण होते थे, जिसके कारण परीक्षा में सफलता के लिए मेरिट प्रतिशत अधिक हो जाता था तथा मेरे जैसे सामान्य छात्र अंततः असफल हो जाते थे।' – महेश ने वास्तविकता समझाई।


कोचिंग, प्रतियोगिता परीक्षा, वर्तमान समस्याएं, आदि से संबंधित कई मुद्दों पर दोनों के बीच काफी देर तक बात होते रहीइसके बाद देवेन्द्र वहाँ से चला गया


देवेन्द्र के जाते ही उसका एक पुराना मित्र राजेश उससे मिलने आया। राजेश से वह लगभग चार सालों के बाद मिल रहा था। उसके आते ही उसने पूछा, 'अरे राजेश! कहो कैसे मेरी याद आ गई तुम तो मेरे घर का रास्ता ही भूल गए थेआजकल क्या कर रहे हो और कहाँ हो?'


राजेश ने हंसते हुए कहा, 'तुमने भी तो मुझे याद नहीं किया। देर ही सही पर आया तो मैं ही न।'


बहुत अच्छा। सब ठीक-ठाक है न? - महेश ने पूछा।


'हाँ, सब ठीक-ठाक है। मैं तुम्हें कुछ बताना चाह रहा था। पता नहीं तुम्हें कैसा लगेगा।' - राजेश कुछ बताना चाह रहा था, पर उसे संकोच हो रहा था


अरे भई, तुम्हारा पुराना दोस्त हूँ। मुझसे संकोच कैसा। - महेश ने उसे समझाया।


देखो, वात दरअसल यह है कि मुझे तुम्हारे बारे में पता चला है कि तुम प्रतियोगिता परीक्षाओं के प्रश्न-पत्र बहुत तेजी से हल कर लेते हो। यदि तुम हाँ कहो तो तुम्हें इसके बदले लाखों रूपये मिल सकते हैं? - राजेश ने संकोच करते हुए कहा।


लाखों रूपये! पर कैसे? - महेश को आश्चर्य हुआ।


तुम दूसरे छात्रों के बदले परीक्षा में बैठो। मैं यह काम पिछले  दो सालों से कर रहा हूँतुम्हारे जैसे कई तेज-तर्रार लोग मेरी टीम में काम कर रहे हैं। ये लोग किसी दूसरे छात्र के बदले परीक्षा में बैठते हैंएक परीक्षा में बैठने के दो से तीन लाख रूपये मिलते हैं। एक से डेढ़ लाख रूपये में बैठने वाले व्यक्ति को देता हूँ, बाकी के पैसे से में परीक्षा केन्द्र के कर्मचारियों एवं शिक्षकों को अपनी ओर मिलाता हूँआज तक कोई दिक्कत नहीं हुई। कोई परेशानी नहीं होगी, परीक्षा केन्द्र जहाँ होता है, उस क्षेत्र के पुलिस थाना को भी पहले से ही उचित कमीशन दे दी जाती है। - राजेश ने एक सर में तेजी से सारी बात बताया।


महेश सोच में पड़ गया। वह आर्थिक तंगी का शिकार था। वैसे भी कोचिंग से उसे अधिक आय नहीं हो रही थी। उसने पछा, 'एक माह में कितनी परीक्षाओं में बैठ सकते हैं?'


एक माह में औसतन एक से दो या अधिकतम तीन परीक्षाओं में बैठने का मौका मिलेगा। - राजेश ने बताया।


महेश मन-ही-मन हिसाब लगाने लगा, 'इसका मतलब एक महीने में एक लाख से लेकर तीन लाख तक कमाया जा सकता है। लेकिन यदि पकड़ा गया तब क्या होगा?'


क्या सोच रहे हो, महेश? - राजेश ने पूछा


मैं सोच रहा था कि क्या इसमें पकड़ाने का खतरा नहीं है? - महेश ने प्रति प्रश्न किया।


नहीं। बिल्कुल नहीं। मैंने कहा न कि जिस क्षेत्र में परीक्षा _केन्द्र होता है वहाँ के पुलिस थाना को उसका कमीशन दे दिया जाता है। जिस क्षेत्र में यह समझौता नहीं होता है, वहाँ मैं अपने आदमियों को भेजता ही नहीं हूँ। मेरी गारंटी समझो। इसमें कहीं कोई खतरा नहीं है। - राजेश ने उसे समझाया


मुझे सोचने के लिए कुछ समय चाहिए। एक बार में अच्छी तरह सोच लूँ, उसके बाद तुम्हें फोन करूंगा। यदि फोन किया तो इसका मतलब हाँ समझो, नहीं तो नहीं। - महेश ने कहा।


ठीक है, जैसी तुम्हारी मर्जी। - इतना कहकर राजेश चला गया।


राजेश के जाते ही महेश सोचने लगा, 'कुछ दिनों तक यह काम कर उसे फिर छोड़ दूंगा। .... पर यह सही नहीं लग रहाकिसी दूसरे छात्र के बैठने के कारण एक तो अयोग्य व्यक्ति का चयन हो जाता है, साथ ही एक दूसरे योग्य व्यक्ति, जिसका चयन दूसरे छोत्र के न बैठने की स्थिति में हो सकता है, को भी इसके कारण नुकसान उठाना पड़ता है। यह किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं है।'


फिर उसे अपनी परेशानियों की याद आई। उसके बेटे ने अभी स्कूल जाना शुरू किया है। उसकी आगे की पढाई के लिए बहुत सारे पैसे चाहिए। वह अपनी पत्नी के शौक कभी अच्छी तरह पूरे नहीं कर पाया है। अभी भी वह किराए के मकान में रह रहा हैउसे भविष्य को सुधारने का एक मौका मिला है। उसे यह मौका गंवाना नहीं चाहिए। उसने सोचा कि वह राजेश को फोन करेगा कि वह तैयार है।


अगले ही पल वह सोचने लगा, 'मैं तो किसी अयोग्य छात्र के बदले में बैलूंगा, जो अयोग्य होते हुए भी अपने पैसे के बल पर चयनित हो जाएगा, लेकिन यदि मैं परीक्षा में नहीं बैलूंगा, तो किसी योग्य छात्र का चयन होगा। योग्यता रहते हुए भी चयनित नहीं हो पाने का दर्द क्या होता है, यह मुझसे बेहतर कौन जान सकता है? ... नहीं, नहीं.... यह किसी भी स्थिति में अच्छा नहीं होगा।.... मैं राजेश को ना कह दूंगा। ना क्या कहना है .... उसे फोन नहीं करूंगा।'


लेकिन कोचिंग की स्थिति तो बिगड़ती जा रही है। यह नहीं चला तो क्या होगा? एक मौका आखिर क्यूँ गवाऊँ? – उसके मन में द्वन्द्व चल रहा था।


 'तो क्या अपने फायदे के लिए वह गलत राह पर चलेगा। वह अपने छात्रों को सही राह पर चलने की शिक्षा देता है। क्या वह खद गलत राह पर चलने लगेगा। नहीं... कभी नहीं। अंततः उसने निश्चय कर लिया कि वह राजेश की बात नहीं मानेगा। तो फिर वह अपनी आर्थिक स्थिति को ठीक कैसे करेगा। उसके अंतर्मन ने उसे इसका जवाब दिया, 'मेहनत थोड़ी ज्यादा करनी पड़ेगी। अब तक मैंने अपने कोचिंग के विज्ञापन पर ध्यान नहीं दिया है। यदि मुझमें छात्रों को सफलता दिलाने की क्षमता है तो इसका प्रचार भी तो होना चाहिए, तभी तो अभिभावक अपने बच्चों को मेरे पास भेजेंगेथोड़े-बहुत पैसे बचाकर रखे हैं उससे प्रोजेक्टर आ जाएगा। यदि बैंक से लोन मिल गया तो बहुत अच्छा नही तो रोजी-रोटी चल ही रही है। गलत राह पर चलने से अच्छा जो है इतना ही ठीक है।' - महेश ने निश्चय कर लिया कि वह राजेश को फोन नहीं करेगा


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