ग़ज़लें - फूलचंद गुप्ता
-----------------
पहले - पहले डर लगता है
फिर पिंजरा ही घर लगता है
मुझको तो हैवान , यहाँ पर
काज़िम से बेहतर लगता है
कानी हौद बनी अब संसद
लोकतंत्र बेघर लगता है
जिसके सीने पर सिर रक्खा
पड़ा वहीं पत्थर लगता है
मिली अजीब आँख है तुझको
हर हाकिम सुंदर लगता है!
बंद कफ़स है , कटे पंख हैं
जिंदा हूँ मर मर लगता है
कहीं चीख़ है , कहीं ठहाके
यह कैसा मंज़र लगता है ?
नदी , नाव , पतवारों के अब
मिलने का अवसर लगता है।
..फूलचंद गुप्ता
बी/7, आनंद बंगलोज, गायत्री मंदिर रोड, महावीर नगर,
हिम्मत नगर -383001 गुजरात, मो.94263 79499